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________________ कल्याणमंदिरस्तोत्र अथर्सदित. ३२५ जे ,ते तो (श्रास्तां के०) दूर रहो, परंतु (नवतः के०) तमारूं ( नामापि के) श्रीपार्श्वनाथ एवं नाम जे जे ते पण ( नवतः के०) संसारथकी (ज गंति के० ) त्रण जगत्ने (पाति के०) रक्षण करे . त्या दृष्टांत कहे बे. ( पद्मसरसः के० ) कमलोपल दित एवा तलाव- जे पाणी ते तो (आ स्तां के०) पूर रहो. परंतु ते पद्मसरोवरनो ( सरसः के ) सुंदर ठंमो जलशीकर युक्त एवो (अनिलोऽपि के०) वायरो पण ( निदाघे के०) ग्रीष्मकालने विषे (तीव्र के) आकरो एवो (तप के०) तमको तेणें करीने ( उपहत के ) हणाणा एवा ( पांथजनान् के) पथिक जनोने (प्रीणाति के०) संतोष करे जे. अर्थात् पद्मसरोवरनो वायरो पण पथिकोने प्रसन्न करे बे, तेवारें जलनुं तो गुंज कहे ? तेम हे प्रनो ! तमारं नाम पण त्रण जगत्ने पवित्र करे , तेवारें तमारा स्तोत्र नी तो शीज वार्ता कहेवी ? ॥ ७॥ हवे खामीना ध्यान- माहात्म्य कहे . हार्तिनि त्वयि विनो!शिथिलीनवंति,जंतोः दाणेन निविडाअपि कर्मबंधाः ॥ सद्योनुजंगममयाश्व म ध्यन्नाग, मन्यागते वनशिखंडिनि चंदनस्य ॥ ७ ॥ अर्थः-(विलो के०) हे स्वामिन् ! (त्वयि के०) तमो (हृर्तिनि के०) हृ दयने विषे वर्त्तते ते (जंतोः के०) प्राणीना (निविमाअपि के०) दृढ एवा पण (कर्मबंधाः के) कर्मना जे बंधो ते पण (कणेन केश) क्षणमात्रे करी ने (शिथिलीनवंति के०) शिथिल थ जाय बे,एटले निविमताने डोमीने शिथिलताने नजे बे.अहीं दृष्टांत कहे बे.ते जेम केः-(वनशिखं मिनि के०) वननो मयुर ते ( मध्यन्नागं के ) वनना मध्यनागप्रत्यें (अन्यागते के०) आवे बते (चंदनस्य के०) चंदनना वृदना जे (जुजंगममयाश्व के०) सर्प मयबंधनो जे जे ते जेम (सद्यः के) तत्काल शिथिल थक्ष जाय , तेनी पेरें जाणी लेवं. एटले जेम वनमयुर वनना मध्यनागें आवे बते चंदन दनां सर्पवेष्टन शिथिल थर जाय बे, तेम तमें पण प्राणीना हृदय मध्ये आवे बते ते प्राणीना दृढ कर्मबंध पण शिथिल थर जाय ॥७॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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