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प्रतिक्रमण सूत्र. ( उपयाति के०) पामे बे. अर्थात् था तमारा स्तोत्रना पाठ करनारने पूर्वोक्त श्राप प्रकारना जयनो नाश थाय ३ ॥४३॥
हवे स्तवनप्रनाव सर्वखने कहे जे. स्तोत्रस्रजं तव जिनें? गुणैर्निवहां, नत्या मया रुचिरवर्णविचित्रपुष्पाम्॥धत्तेजनो यश् कंगता मजस्रं, तं मानतुंगमवशा समुपैति लक्ष्मीः ॥४॥
इति नक्तामर नामकस्तोत्रं सप्तमस्मरणम् ॥ ७ ॥ अर्थः-(जिने के०) हे जिने ! (तव के०) तमारी (इह के०) आलो कने अषे (यःके०) जे (जनः के०) पुरुष, (स्तोत्रस्त्रजं के०)स्तोत्र तेज पद सं दर्जितपणे करीने जाणे मालाज होय नहिं ? ते स्तोत्ररूप पुष्पमालाने ( कंगतां के०) पोतानां कंठने विषे (अजस्रं के) निरंतर (धत्ते के०) धा रण करे बे, (तं के०) ते (मान के०) चित्तनी उन्नति तेणें करीने (तुंगं केण) अत्यंत उन्नत थयेलो एवो पुरुष अथवा स्तोत्रना कर्ता श्री मानतुं गाचार्य जे ते (अवशा के०) अखतंत्र एवी जे (लक्ष्मीः के०) वर्गपवर्ग अने सत्काव्यरूप लक्ष्मी तेने, (समुपैति के०)पामे बे. हवे ते स्तोत्र रूपस्त्र ज केहवी ने ? तो के मानतुंगाचार्यनामक एवो (मया के) हुंजे तेणें (जत्त्या के) नक्ति जे श्रझा, अथवा पुष्पमालापदें नक्ति जे विचित्र रचना तेणें करीने अने (गुणैः के०) प्रजुना गुणे करीने अथवा पुष्पमालापदें गुण जे सूत्र तेणें करीने ( निबझां के ) बांधेली बे, गुंथेली बे. वली कहेवी ने तो के (रुचिर के०) मनोहर एवां ( वर्ण के ) बावन अदर तेज डे (विचित्रपुष्पां के०) चित्र विचित्र पुष्पो जेने विषे अने पुष्पमाला पदमां मनोहर ने वर्ण जेना एवां विचित्रपुष्पो ने जेमां एवी जे. श्रा स्तोत्रना अंतमां पुष्पस्रज शब्द जे जे ते अनीष्ट शकुनपणायें करी महोत्सवनां श्रानंदनो कारणनूत ने अने लक्ष्मी शब्द जेबे, ते मांगल्यवाची बे, तेणें करी था स्तोत्रना पाठ करनार तथा श्रवण करनार पुरुषने आ स्तोत्रनी समाप्ति पर्यंत कल्याण परंपरा थाशे, एवो नाव डे ॥४४॥ इति जक्तामर स्तोत्रनामक सप्तमस्मरणस्य बालावबोधः समाप्तः ॥७॥
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