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प्रतिक्रमण सूत्र. थइ (तथा के०) तेवी ( परस्य के ) बीजा जे हरिहरादिक देवो , तेनी (न के०) नथी थती. त्या दृष्टांत कहे . के जेम (प्रहत के०) प्रकर्षे करी हण्यो डे (अंधकारा के०) अंधकार जेणे एवी (दिनकृतः केप) सूर्य जे तेनी (यादृप्रना के०) जेवी कांति बे, (तादृक् के०) तेवी कांति, ( विका शिनोपि के०) प्रकाशित थयेला एवा (ग्रहगणस्य के०) नौमादिक जे ग्रह ना समूह तेनी प्रजा (कुतः केप) क्यांश्री होय ? एटले सर्वथा नज होय. अर्थात् देशना समयें जे अशोक वृक्षादिक श्राप महा प्रातिहार्य तथा चोत्रिश अतिशयवाली एवी तमारी जे समृद्धि , तेवी हरिहर ब्रह्मा दिकनी क्यांथी होय ? कारण के एमने सरागपणाने सीधे कर्मक्षयपणुं नधी ते कर्मदय विना उत्तमोत्तमताने पमाय नहीं. अने उत्तमोत्तमता विना प्रातिहार्यादिक समृझिनो अनावज होय ॥ ३३ ॥
___ हवे जिनने गजलयहर दर्शावतो बतो कहे जे. श्योतन्मदाविलविलोलकपोलमूल, मत्तत्रमन्त्रम रनादविटकोपम् ॥ ऐरावतानमिनमुश्तमापतंतं,
दृष्टा जयं भवति नो नवदाश्रितानाम् ॥ ३४ ॥ अर्थः-हे नाथ ! (श्योतत् के) करतो एवो (मद के ) मद तेणें करीने (आविल केआ) कलुष थयेला एवा अने (विलोल के.) चंचल एवा जे (कपोलमूल के०) गंमस्थल जे गंगप्रदेश तेणें करीने (मत्त के०)मदोन्मत्त थयेलो एवो अने (चमत् केण) अहिं तहिं ब्रमण करनारा एवा जे (जम र के०) जमरा तेना (नाद के०) ऊंकारशब्द तेणें करीने ( विवृद्धकोपं के ) वृद्धि पाम्यो ने क्रोध जेने एवो अने (ऐरावतानं के ) ऐरावत हाथीना सरखीने आजा एटले कांति जेनी एवो अने (उद्धतं केश) अविनी त एटले अंकुशादिक शस्त्रने अवगणना करतो एवो जे (नं के०) हस्ती, तेने (श्रापतंतं केश) सन्मुख आवता एवाने (दृष्ट्वा के०) जोस्ने (जवत् के०) तमारा (श्राश्रितानां के) आश्रय करीने रहेला एवा जनोने अर्थात् तमारा जक्तजनो जे तेने, (जयं के) जयजे , ते (नोजवति के०) नथी यतुं ॥३॥
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