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________________ भक्तामरस्तोत्र अर्थसहित. ३०३ हवे अतिशय छारायें जिनने स्तुति करतो तो कहे जे. .. नन्निज्मनवपंकजपुंजकांति, पर्युल्लसन्नखमयूख शिखानिरामौ ॥ पादौ पदानि तव यत्र जिनें! धत्तः,पद्मानि तत्र विबुधाः परिकल्पयंति ॥३॥ अर्थः-(जिने के०) हे जिनें! (उन्निके०) विकसित (हेम के०) सुवर्णनां (नव के०) नवसंख्या जे जेनी अथवा नवीन एवां (पंकज के) कमल, तेना (पुंज के०) समूह तेनी (कांति के०) युति तेणें करिने (पर्युलसत् के०) चारे तरफ उबलतां एवां, (नखमयूख के०) परमे श्वरना पगना नख तेनां जे किरणो तेनी ( शिखा के०) प्रकाशपंक्ति जे ने आसमंतात् नागमां फेली रही ले तेणें करीने (अनिरामौ के० ) म नोहर एवां ( तव के) तमारां (पादौ के ) चरणो ते, ( यत्र के) जे नूमिनेविषे ( पदानि के ) गमननां स्थानकप्रत्ये (धत्तः के०) धा रण करे . ( तत्र के) ते स्थलने विषे ( विबुधाः के०) देवता (प झानि के० ) कमलोने (परिकल्पयंति के ) रचना करे . एटले बे क मल चरणनी नीचे अने सात कमल मार्गमां रचे जे. अहीं नख कमलनी कांति दर्पण सदृश बे, अने देवतायें रचेलां एवां सुवर्णकमलनी कांति पीत बे, ते बेहुना मलवाथी चरणोनो विचित्र वर्ण थयो ॥ ३५ ॥ हवे एक अतिशयें करीने बीजाउँने उत्देप करता उपसंहार करे . श्वं यथा तव विनूतिरनूजिने !, धर्मोपदेशनवि धौ न तथा परस्य ॥ यादृक् प्रना दिनकृतःप्रदतांध कारा, तादृक्कतोगदगणस्य विकाशिनोपि ॥३३॥ अर्थः-(जिनेंड के)हे सामान्य केवलीने विषेश तुल्य!ऽर्गतियें पगता प्राणीने धरी राखे एवो जे श्रुत चारित्र लक्षण (धर्म के०) धर्म, ते धर्मना (उपदेशन विधौ के०) उपदेश विधिने विषे एटले उपदेश करवाना समयने विषे, (श्चं के) ए पूर्वे कही एवी (तव के०) तमारी (विजूतिः के ) अतिशयनी संपदा ते, (यथा के०) जे प्रकारें (अनूत् के०) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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