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________________ श जक्तामरस्तोत्र अर्थसहित. परमाणुयें करीने ( निर्मापितः के) निर्माण करेला एवा शरीरवाला (त्वं के०) तमें बो. अने ( तेपि के० ) ते पण ( अणवः के ) परमाणु (पृथिव्यां के०) जगतने विषे (तावंतएव के०) जगव निर्मितमात्रज बे, एट ले ते रागोषनी शांतता रूप परमाणु पण (खलु के०) निश्चे जगतमां तेट लाज , तेने विषे हेतु कहे . ( यत् के)जे कारण माटें (पृथिव्यां के०) पृथिवीने विषे ( ते के० ) तमारा ( समानं के) सर ( अपरं के) बीजु कोइ (रूपं के ) रूप ( नहि के ) नहिं ( अस्ति के०) बे ॥१५॥ हवे प्रजुना मुखनुं वर्णन करे . वकं व ते सुरनरोरगनेत्रहारि, निःशेषनिर्जितजग त्रितयोपमानम् ॥ बिंबं कलंकमलिनं क निशाकर स्य, यवासरे नवति पांमुपलाशकल्पम् ॥ १३ ॥ अर्थः-हे नाथ! (सुर के०) देवताउँ, ( नर के)मनुष्यो, (उरग के०) नुवनपति अथवा नागकुमार प्रमुख जे देवो तेनां (नेत्र के०) चतु, तेने (हा रि के०) हरण करवानुं बे शील जेनुं एवं जे. वली केहq ने ? तो के (निशेष के०) समस्त एवां जे (जगत्रितयोपमानं के०) त्रण नुवनने विषे जेनी उपमा देवाय एवा कमल, चंड, दर्पणादि पदार्थों ते सर्वना सौंदर्य ने ( निर्जित के) निःशेषपणायें करीने जीत्युं वे जेणे एवं ( ते के) तमारं ( वक्र के०) मुख, ते (क के० ) क्यां ? अने (कलंकमलिनं के०) लांबनें करी मलिन तथा ( यत् के) जे ( वासरे के०) दिवसने विषे (पांमुपलाशक:पं के) खाखराना जामनुं पांदा जेवू पीबुं पमी जाय, तेना सरखं (जवति के०) थाय . एवं (निशाकरस्य के०) चंउमा तेनुं (बिंब के०) बिंब ते (क्व के ) क्या ? अर्थात् तमारा मुखनुं अने चंबिबर्नु उपमेयत्व घटतुं नथी ॥ १३ ॥ हवे नगवझुणोनी व्याप्ति कहे जे. संपूर्णमंमलशशांककलाकलाप, शुत्रागुणास्त्रि जुवनं तव लंघयंतिाये संश्रितास्त्रिजगदीश्वरःना थमेकं, कस्तान्निवारयति संचरतोयथेष्टम् ॥१४॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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