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________________ श प्रतिक्रमण सूत्र. हवे जगवदर्शन- फल कहे .. दृष्ट्वा नवंतमनिमेषविलोकनीयं, नान्यत्र तोषमुप याति जनस्य चक्षुः॥पीत्वा पयःशशिकरद्युतिउग्ध सिंधोः, दारं जलं जलनिधेरशितुं कश्चेत् ॥११॥ अर्थः-हे नाथ ! (अनिमेषविलोकनीयं के०) मिषोन्मिषरहितपणे क रीने जोवा योग्य, एटले दर्शन करवा योग्य एवा (नवंतं के०) तमोने ( दृष्ट्वा के०) जोश्ने ( जनस्य के०) ते जोनारा लोकोनां (चकुः के०) चकुर्ड जे बे, ते (अन्यत्र के०) तमाराथी व्यतिरिक्त जे अन्य दवो , तेने विषे (तोष के०) संतोषने (नउपयाति के० ) न पामे बे, अर्थात् अ निमेषह ष्टियें करीने तमारा दर्शन करनारा एवा जे नव्य जनो, ते तमारे विषेज प्रीतिने पामे बे, परंतु अन्य हरिहरादिक देवोने विषे प्रीति पामता नथी. त्या दृष्टांत कहे . के (शशि के०) चंद्रमा तेनां (कर के०) किरणो तेनी (युति केण) कांति तेना सरखी उज्ज्वल ने कांति जेनी एवो जे (उग्धसिंधोः के) दीरसमुज तेनुं (पयःके) पाणी. तेने (पीत्वाके०) पान करीने (कः के०)कयो पुरुष, (जलनिधेः के०) लवणसमुद्र जे बे, ते नुं (दारं जलं के०) न पीवा योग्य एवं अस्वादिम खालं पाणी तेने (अ शितुं के०) पान करवाने (श्छे त्के०) श्छा करे ? अर्थात् क्षीरसमुना पा णीसदृश एवं जे तमारं दर्शन, तेने त्याग करीने लवणसमुज्ना पाणी तु ख्य एवं जे अन्य देवोनुं दर्शन, तेने कोण करे? अर्थात् कोश् नज करे॥११॥ हवे जगवानना रूपनुं वर्णन करे . यैः शांतरागरुचिनिः परमाणुनिस्त्वं, निर्मापितस्त्रि जुवनैकललामन्नूत!॥ तावंतएव खलु तेप्यणवः पृ थिव्यां, यत्ते समानमपरं नहि रूपमस्ति ॥१२॥ अर्थः-(त्रिनुवन के०) त्रण जुवनने विषे (एक के०) अद्वितीय एटले एकज (ललामजूत के०) सुंदरजूत तेना संबोधनने विषे हे त्रिजुवनैकललाम नूत ! (यैः के०)जे (शांत के०) शांतनामा जे नवमो रस, तेनो(राग के०) जाव तेनी (रुचिलिः के०) गया जे जेमने विषे एवा (परमाणु निः केय) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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