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नक्तामरस्तोत्र अर्थसदित. ១០១ अर्थः-(अल्पश्रुतं के) अल्प डे श्रुत एटले शास्त्रज्ञान अवधारण जेनुं ए कारण माटें (श्रुतवतां के०) श्रुतज्ञानवंत एवा पुरुषो एटले बहुश्रुत जनो तेमनें (परिहासधाम के) हास्य करवानुं स्थानकरूप एवो (मां के०) मने (त्वन्नक्तिरेव के०) तमारी नक्तिज (बलात् के०) बलात्कारथकी स्तोत्र करवाने ( मुखरीकुरुते के० ) वाचाल करे . त्या दृष्टांत कहे जे. ( यत् के०) जे कारण माटें (मधौ के०) चैत्र मासने विषे (कोकिलः के०) को किल जे डे, (किल के०) सत्य ( मधुरं के ) मनोझमधुर खरने ( विरौ ति के०) जपे बे, बोले ले (तत् के०) ते बोलवाने (चारुचूतकलिका के०) मनोहर एवी आम्रकलिका तेनो (निकर के०) समूह, तेज (एकहे तुः के) एक कारण बे, तेम मने तमारी नक्तिज एक कारण ॥६॥
हवे स्तवन रचनामां जे गुण , ते कहे . त्वत्संस्तवेन नवसंततिसन्निबई, पापं दाणादय मुपैति शरीरनाजाम॥ आक्रांतलोकमलिनीलमशे
षमाशु, सूर्याशुनिन्नमिव शार्वरमंधकारम् ॥ ७॥ अर्थः-हे जिन ! (शरीरलाजा के०) देहने नजनारा एटले देहधारी जे जीवो बे, तेनुं (जवसंततिसन्निबधं के०) जव जे जन्म, जरा अने मरण रूप संसार तेनी परंपरायें करी बंधायेदुं एवं जे (पापं के०) पाप ते, (त्व संस्तवेन के०) तमारा रूमा स्तवनें करीने (कणात् के०) घमीना बहा जागे करीने (वयं के०) क्षयने (उपैति के० ) पामे . कोनी पेठे पामै बे? तो के (आक्रांतलोकं के०) लोकमां व्यापी रहेलो एवो अने (अलि के) ब्रमराना सरखो (नीलं के०) श्याम कालो अने (शार्वरं के५) अं धारीरात्रिथकी उत्पन्न थयो एवो जे (अशेषं के० ) समस्त (अंधकार के०) अंधकार जे जे ते, (आशु के) शीघ्र (श्व के०) जेम (सूर्यांशु के०) सूर्यना अंशु जे किरणो तेनो जे प्रकाश तेणें करीने (निन्नं के०) नाश पा मेलो होय , तेनी पेरें जाणी लेवं. एटले तिमिर नाशमां जेम सूर्यप्र काश कारण , तेम पापक्षयमां तमारो स्तव ॥७॥
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