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________________ जक्तामरस्तोत्र अथर्सदित. प्रवर्त्तनथकी गतलज बतो ( स्तोतुं के०) स्तुति करवानी (समुद्यतमतिः के०)रूडे प्रकारे प्रयत्नवती करेली के बुद्धि जेनी अर्थात् उद्यमवती थश्बु छि जेनी एवो (अहं के) हुँ ढुं. अहीं दृष्टांत कहे जे. ते जेम के (जलसं स्थितं के ) जलने विषे रूडे प्रकारे रह्यां एटले प्रतिबिंबित थयेनुं एवं जे (बिंब के०) चंप्रमानुं प्रतिबिंब तेने (सहसा के०) तत्काल (ग्रहीतुं के०) ग्रहण करवाने (बालं विहाय के०) बालक विना एटले बालक मूकीने (अ न्यः के०) बीजो (कः के०) कयो (जनः के०) मनुष्य. (श्वति के०) श्ला करे ? अर्थात् बालक विना बीजो कोश् पण बुद्धिमान् जन, जलप्रति बिंबत चंने ग्रहण करवाने श्वतो नथी. तेम हुँ पण तमारं स्तोत्र कर वाने बालकनी पेरें अशक्य बतो पण स्तुति करवाने अभिलाष करुं बु. मा टें मने गतलऊ बालकज जाणवो ॥३॥ हवे जगवान्नी स्तुति करवामां बीजाउंनी कुष्करता देखाडे डे. वक्तुं गुणान् गुणसमु! शशांककांतान्, कस्ते दमः सुरगुरुप्रतिमोपि बुझ्या ॥ कल्पांतकालपवनोश्त नक्रचक्रं, कोवा तरीतुमलमंबुनिधिं जुजाच्याम् ॥४॥ अर्थः-(गुणसमुन के०) गुणसमुज एटले हे गुणरत्नाकर ! (ते के०) त मारा (शशांककांतान के०) शशांक जे चंप्रमा, तेना सरखा मनोहर उज्ज्वल एवा (गुणान् के०) गुणो जे जे तेने (वक्तुं के) कहेवाने वर्णन करवाने (बुध्या के०) बुद्धियें करीने (सुरगुरुप्रतिमोपि के०) बृहस्पति समान ए वो पण (कः के०) कयो पुरुष, (क्षमः के०) समर्थ थाय ?अर्थात् को ६ पण समर्थ थतो नथी. आहीं दृष्टांत कहे , के जेम (कल्पांतकाल के०) प्रलयकाल जे संहारकाल, तेनो (पवन के) वायु, तेणें करी ( उक त के०) उड्या एटले उबली रहेला एवा डे (नक्रचक्रं के०) नक्र चक्र ए टले मगरमत्स्यना समूह जेने विषे एवो जे (अंबुनिधि के०) समुख तेने (नु जान्यां के) बे हाथें करीने (अलं के) परिपूर्ण (तरीतुं के) तरवाने (कः के) कोण (वा के०) वा ते दृष्टांतना अर्थमां डे (दमः के) समर्थ थाय? अर्थात् एतादृश समुज्ने बे हाथे करी तरवाने कोइ पण समर्थ थ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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