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________________ शन्। प्रतिक्रमणसूत्र. श करनारं एवं, तथा ( दलित के०) दलन करी नाख्यो डे (पाप के०) पापरूप जे (तमो के०) अंधकार तेनो ( वितानं के० ) समूह जेणें एबुं तथा (जवजले के ) संसारसमुज्ने विषे ( पततां के०) पडेला एवा (जनानां के) नव्यजनोने (युगादौ के०) युगने आदें एटले त्रीजा आरा ना अंतमां (श्रालंबनं के०) आलंबन ते आधारनूत श्राश्रयरूप एवं (जिनपादयुगं के) श्री तीर्थंकरनु पादयुग, तेने मन, वचन तथा काया यें करी (सम्यक् के०) रूडे' प्रकारें (प्रणम्य के०) नमस्कार करीने ॥१॥ (यः के) जे जगवान् ते, ( सकल के० ) समस्त एवं ( वाङ्मय के) शास्त्र तेनुं ( तत्त्व के० ) रहस्य तेना ( बोधात् के) जाणवाथकी (उभूत के०) उत्पन्न थर एवी जे निपुण (बुद्धि के) कि तेणें करी (पटुभिः के ) कुशल एवा (सुरलोकनाथैः के०) देवलोकनानाथ जे इंस्रो, तेणें (जगत्रितय के० ) त्रण जगतना जे प्राणी तेनां (चित्तहरैः के) चित्त ने हरण करनारां एवां तथा ( उदारैः के०) अर्थथकी अने शब्दथकी उ दार एवां निर्दोष ( स्तोत्रैः के०) स्तोत्रोयें करीने (संस्तुतुः के०) स्तुति करेला जे. (तं के०) ते चोविश जिननी अपेक्षायें सर्व जिनोमां (प्रथम के) श्राद्य एवा (जिने के०) सामान्य केवलीमां इंस सरिखा श्री शषन खामी तेने (अहमपि के) हुँ पण ( किल के०) निश्चें करी (स्तोष्ये के०) स्तुति करीश ॥२॥ आ, सर्व स्तोत्रना वसंततिलकाबंद बे. हवे स्तोत्रकर्ता श्री मानतुंगाचार्य, पोताना उकतपणानो त्याग करे . बुझ्या विनापि विबुधार्चितपादपीठ, स्तोतुं समुद्य तमतिर्विगतत्रपोऽदम् ॥ बालं विहाय जलसंस्थि तमिबिंब, मन्यः कश्बति जनःसहसा ग्रहीतुम्॥३॥ अर्थः-( विबुध के०) देवर्नु श्रथवा पंमितो तेणें ( अर्चितके० ) श्र र्चन एटले पूजन करेधुं एq डे (पादपीठ के०) पादासन एटले पग राख वानुं श्रासन जेनुं, तेना संबोधनने विो हे विबुधार्चितपादपीठ ! (बुझ्या विनापि के०) बुझिविना पण एटले पांमित्य विना पण (विगतत्रपः के) विशेषे करीने गर जे त्रपा एटले लजा जेनी अर्थात् अशक्य वस्तुने विषे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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