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________________ अजितशांतिस्तव अर्थसहित. १ तथा (किन्नरोरग के०) किन्नर अने उरग जे व्यंतर विशेष, तेमणे (णमं सिधे के०) नमस्कार कस्यो जे जेमने एवा तथा (देव के०) वैमानिक दे वो तेमना (कोमिसय के०) कोटिशत एटले शेकमा गमे कोटियो तेमणे (संथुओं के०) स्तुति करी जे जेमनी एवा, तथा (समणसंघ के०) यतिना संघ अथवा श्रमण एटले चतुर्विध संघ, तेणें ( परिवं दिशं के) परि समंतात् एटले चोतरफनावें करीने वंदन कयुं में जेमने एवा ॥२०॥ आ, सुमुखनामा छंद जाणवो ॥ अनयं अणदं, अरयं अरुयं ॥ अजियं अ जिअं, पय पणमे॥२॥वितविलसिअं॥ अर्थः-वली केहेवा डे ? तो के (अजयं के०) सात प्रकारना नयें क री रहित एवा, तथा (अणहं के०) अनघं एटले जेने अघ जे पाप, ते अ एटले नथी तेने अनघ कहियें एवा, तथा (अरयं के०) अरत एटले वैरागपणायें करीने विषयासक्तपणुं नयी अथवा अरत एटले मैथुन रहि त डे एवा, तथा (अरुयं के०) अरुज एटले रोगरहित , तथा (अजि यं के०) बाह्य अने अत्यंतर वैरीयोयें जेंने परानव पमाड्या नथी एवा (अजिअं के) श्रीअजितनाथ तेने ( पयर्ड के०) सादरपणे (पणमे के०) प्रणाम करुं हुं ॥ २१॥ श्रा, विद्युछिलसित नामा छंद जाणवो ॥ हवे चार श्लोकें करीने शांतिनाथजीने स्तवे . आगया वर विमाण, दिव्व कणग रद तुरय पदकर सएदिं हलिअं॥ ससंनमो अरण, स्कुनिअ लुलिअचल कुंडलं गय तिरीड सोहंत मजलि माला ॥२२॥ वेढळ ॥ अर्थः-(आगया के०) आगता एटले आव्या जे सुरसमुदाय श्री शां तिनाथनी समीपें ते केवी रीतें आव्या ने ? तो के ( वरविमाण के०) श्रेष्ठ विमान तथा (दिव के०) मनोहर एवा(कणगरह के०) कनकमयरथ, (तुरय के०) तुरंग तेना (पहकर के) समूह तेना (सएहिं के) शेकमा ये करीने (हुलियं के) शीघ्र उतावला वेगें तथा (ससंनम के) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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