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प्रतिक्रमण सूत्र. सप्पनं तवसा ॥ गयणंगण वियरण समुश्अ चार
ण वंदिशं सिरसा ॥ १० ॥ किसलयमाला ॥ अर्थः-( विणणय के० ) विनयें करी नत एटले नम्या एवा ( सिरि के०) मस्तक तेने विषे (रश के०) रची बे, जोमी २ (अंजलि के०) करसंपुट जेणे एवा (रि सिगण के०) झषियोना समूह तेमणे (संथुआं के०) रू डे प्रकारें स्तुति करी जेमनी एवा तथा (थिमिश्र के०) स्तिमित एट ले तरंग रहित एवो जे समुद्र तेनी पेठे निश्चल बे. कारण के कर्म कृत उंच नीच पणानो अनाव . तथा (विबुहा हिव के) विबुधाधिप एटले विबुध जे देवता तेमनाअधिप जे इंस्रो तथा (धणवश के०) धनपति जे धनद कुबेर लोकपाल, उपलदणथी बीजा पण सर्व लोकपाल जे जे, तेमणे त था (नरवर के०) नरपति जे राजा चक्रवर्ती तेमणे (बहुसो के) घणी वार (थुय के) वाणीयें करी स्तव्या, (महिअ के०) प्रणामादिकें करीपू जन कस्या एवा तथा (अच्चियं के०) पुष्पादिकें करी अर्चित कस्या एटले पूज्या एवा तथा (तवसा के०) तपें करीने (अश्रुग्गय के०) अचिरोजत एट ले तत्कालनो उदय थयेलो एवो (सरय के०) शरद् ऋतुनो (दिवायर के०) दिवाकर एटले सूर्य, तेथकी पण (समहिश्र के) समधिक एटले अत्यंत अधिक डे (सप्पनं के०) पोतानी प्रजा एटले कांति जेमनी एवा तथा (गयणंगण के०) गगनांगण जे आकाश, तेने विषे (वियरण के०) विचर ण एटले विचरवं, चालवू, तेणें करीने (समुश्य के०) समुदित एटले एक ठा थयेला एवा (चारण के०) जंघाचारणादिक मुनियो, तेमणे ( सिरसा के०) मस्तकें करीने (वंदिरं के) वंदन कझुंडे जेमने एवा २ ॥ १५॥ श्रा, किसलयमाला नामा बंद जाणवो ॥
असुर गरुल परिवंदिअं, किन्नरोरग णमंसिकं ॥ देवको मिसय संथुअं, समण संघ परिवंदियं ॥२०॥ सुमुदं॥
अर्थः-वली केहेवा जे ? तो के (असुर के०) असुर कुमार, (गरुल के०) सुवर्णकुमार, उपलक्षणथी बीजा पण सर्व निकायना नवनपति देवो जे बे, ते पण सेवां. तेमणे (परिवंदिरं के०) समस्त प्रकारे वंदन कस्या एवा
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