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________________ अजितशांतिस्तव अर्थसदित. २६७ वृंद जेमनुं अथवा (वंदधेय के०) सुरेंजादिकें वांदवा योग्य वे गणधरादि कने ध्यान करवा योग्य , अथवा वांदवा कोग्य जे महामुनियो तेमने ध्यान करवा योग्य स्मरण करवा योग्य एवा बे, तथा (सब के०) सर्व ए वा जे (लोष केप) लोक तेणें (जावित्र के) नावित बे, अवबुझ , जा णेलो (प्पन्नाव के०) प्रत्नाव जेमनो तेणें करी (णेश के०) झेय एटले जाणवा योग्य एवा (संति के०) हे श्रीशांतिनाथ ! तमे (मे के) मुऊने (समाहिं के) समाधिने (पश्स के०) प्रदिश एटले पो ॥ १४ ॥ श्रा, नाराचक नामा हुंद जाणवो ॥ __ हवे गाथायुग्में करीने अजितनाथने स्तवे बे. विमल ससि कलारे सोमं, वितिमिर सूर कराअ तेअं॥ तिअस व गणारेअरूवं, धरणिधर प्पवरारेअ सारं ॥१५॥ कुसुमलया॥ अर्थः-(विमल के) निर्मल एवी (ससिकला के०) चंडमानी कला ते थकी (अरेथ के०) अतिरेक ते अधिक डे (सोमं के०) सौम्यता जेनी तथा ( वितिमिर के० ) गयो ने मेघनो अंधकार जेथकी एवा (सूरकर के०) सूर्यनांकिरणो, ते थकी पण (अरेय के ) अधिक डे (तेधे के) तेज जेनु एवा , तथा (तिअसवर के०) त्रिदश जे देवता तेमना पति जे छ तेमना (गण के७) समूह, ते थकी पण (अरेस के०) अधि क (रूवं के) रूप जेनु, जेमाटें सर्व देवता मली पोतानुं रूप एकत्र करी परमेश्वरनी टचली अंगुली पासें मूके, तो पण सुवर्ण अने त्रांबाना रूपमां जेटलो तफावत होय, तेटलो तफावत त्यां देखाय, एवं तीर्थंकर नुं रूप वखाण्यु , तथा (धरणिधर के०) पर्वतो तेमांहे (प्पवर के०) प्र धान श्रेष्ठ एवो जे मेरुपर्वत, तेथकी पण (अशेश केण) अधिक डे (सारं के०) स्थैर्य एटले धैर्य जेमनुं एवा ॥ १५ ॥ आ, कुसुमलता नामा बंद जाणवो ॥ था श्लोक तथा श्रावता श्लोकनो संबंध एकत्र २ ॥ सत्ते असया अजिअं, सारीरे अ बले अजि अं॥ तव संजमे अ अजिअं, एस थुणामि For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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