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________________ २६६ प्रतिक्रमण सूत्र. मुनियो , तेथी पण (अमिश्र के०) प्रमाण थ न शके एq डे ( बला के) सामर्थ्य जेमनुं एटले अपरिमितबल डे जेमनुं एवा माटे हे महा मुन्यमितबल ! तथा ( विउलकुला के०) विपुल एटले विस्तीर्ण डे कुल एटले वंश जेमनो माटे हे विपुलकुल ! तथा (नवजय के) संसारनुं नय, तेने ( मूरण के ) लांजनार माटे हे नवनयमूरण ! तथा (जग सरणा के०) जगत्ना शरण एटले रक्षण करनार माटे हे जगबरण ! तमे ( मम के) महारा पण ( सरणं के) रक्षण करनारा बो, अथवा ( अमम के०) ममत्वरहित डो, माटे हे अमम (ते पणमामि के०) तमो ने हुं प्रणाम करुं हुं ॥१३॥ चित्रलेखाबंद. हवे शांति जिनने स्तवे बे. देव दाणविंद चंद सूर वंद दछ तुह जिह परम ॥ लह रूव धंत रूप्प पट्ट सेय सुछ नि धवल ॥ दंत पंति संति सत्ति कित्ति मुत्ति जुत्ति गुत्ति पवर॥ दित्त तेअवंद धेअ सब लोअनाविअप्पनाव॥ णे पश्समे समादिं ॥ १४ ॥ नाराय ॥ अर्थः-( देव के० ) सुर, (दाणव के ) असुर, तेना (इंद के०) इंड, तथा (चंद के०) चंडमा अने (सूर केu) सूर्य, तेमने (वंद के०) वंद्यमा न ने पग जेना, तथा (हह के०) आरोग्यवंत (तु के०) प्रमोदवंत (जि 5 के०) प्रशंसा करवा योग्य (परमल के०) अत्यंत कांतियुक्त डे (रूव के०) रूप जेमनु, तथा (धंत के) धमेबुं एवं (रूप्प के० ) रूपुं, तेनो (पट्ट के) पाटो, तेनी पेरें (सेय के०) श्वेत ते घन (सुद्ध के०) निर्मल (नि क के०) स्निग्ध अरूद एवी (धवल केआ) उज्ज्वल डे (दंतपंति के०) दां तनी पंक्ति जेमनी, तथा (सत्ति के०) शक्ति ते पराक्रम जो सर्व देवता एका मले, तो पण परमेश्वरनी पगनी टचली आंगुली चलावी न शके, अथ वा मेरु पर्वतने टचली आंगलीयें करी उपाडे, एटली शक्ति बे, (कित्ति के) कीर्ति ने समुशांत जेहनी (मुत्ति के ) मुक्ति ते निर्लोजता (जुत्ति केण्) युक्ति ते न्यायोपेत वचन, (गुत्ति के०) गुप्ति ते त्रण प्रसिक, तेणें करीने (पवर के) श्रेष्ठ बे तथा (दित्ततेत्र के०) दीत ने तेजनुं (वंद के०) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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