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प्रतिक्रमण सूत्र.
एवा तथा (थिर के० ) स्थिर कठिन ( सरि के० ) सरखं श्रविष म एवं ( वछं के० ) वद एटले हृदय बे जेमनुं, अथवा ( थिर के० ) निश्चल ऐवं (सिरिन के० ) श्रीवत्सनामा लक्षण विशेष ते बे (वछं के०) वक्षःस्थलने विषे जेने एवा, तथा ( मयगल के० ) मदोन्मत्त अने ( लीलायमाण के० ) लीला करतो एवो ( वर के० ) प्रधान ( गंधह नि के० 50 ) गंधहस्ती तेनुं जे ( पठाण के० ) प्रस्थान एटले गमन तेनी पेरें (०) पदसंक्रमण एटले गति बे जेमनी एवा, तथा (संथवारिहं के० ) संस्तव जे स्तुति ते वर्णन करवुं तेने श्रई एटले योग्य तथा (हचिव के० ) हस्तीनो हस्त जे शुंडादं तेना सरखा सरल तथा लांबा बे ( बाहुं के० ) बाहु जेना एवा, तथा ( धंत के० ) धमेलुं एवं जे ( कणग के० ) कनक एटले सुवर्ण तेनुं ( रुग के० ) रुचक एटले जाजन अथवा अनरण विशेष तेना सरखु (निरुवदय के० ) निरुपहत एटले निष्कलंक एवो ( पिंजरं के० ) पीतवर्ण बे जेनो एवा, तथा ( पवर के० ) प्रवर एटले श्रेष्ठ एवा शंख, चक्र, अंकुशादिक ( लकण के० ) लक्षणो तेणें करीने ( जव चि ० ) सहित बे व्याप्त बे, तथा ( सोम के० ) सौम्याकार एवं ने देखनाराने (चारु ०) मनोहर सुखदायक बे ( रूवं के० ) रूप जेमनुं एवा, तथा ( सुइ के० ) श्रुति जे कान, तेने ( सुह के० ) सुख नी दायक तथा (मण के० ) मनने ( जिराम के० ) मनोहर आल्हा दकारी (परम के० ) अत्यंत ( रमणिक के० ) रमणिक, अथवा ( पर hu ) उत्कृष्ट बे ( मा के० ) लक्ष्मी जेने एवा श्रीमंत जनो तेने, अथवा ( पर के० ) दूर ठे ( मा के० ) लक्ष्मी जेने एवा दरिद्री जनो, ते वे हुने ( रमणिके० ) रमामनार एटले संतोष पमागनार एवी, तथा (व र०) श्रेष्ठ एव (देवडुडुहि के०) देवडुडुनि तेनो ( निनाय के० ) शब्द तेना सरखी (मरयरसुह के०) मधुर तर शुभ कल्याणकारिणी एवी ठे ( गिरं के० ) वाणी जेमनी एवा बे ॥ ए ॥ या, वेष्टकनामा बंद जावो.
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अजि जिप्रारिगणं, जिप्रसवजयं नवो दरिजं ॥ पणमामि यहं पयर्ज, पावं पसमेन मे जयवं ॥ १० ॥ रासालु
॥ युग्मं ॥
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