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________________ नमिकण अर्थसहित. २४ए बे, (पहिअसबासु के०) पंथीयोना सायो जेने विषे एवी अटवीयो बे॥१॥ एवी अटवीयोमां पण हे श्रीपार्श्वनाथ ! (अविवुत्त के०) नथी चोखु एवं (विहवसारा के०) उत्कृष्टधन जेनु, ते कोण पुरुष उत्कृष्ट धन नथी चोयु? तो के ( नाह के०) हे नाथ ! (तुह के) तमोने (पणाममत्त के०) प्रणाममात्र करवो, तेज ने ( वावारा के०) व्यापार जेमने, एटले ते अवसरने विषे तमोने प्रणाम करवानुं ने कृत्य जेमनुं एवा पथिको जे बे, तेना (सिग्धं के०) शीघ्र एटले उतावला (विग्घा के०) विघ्नसमूह, (वव गय के०) विशेषे करी गया जे जेथकी एवा पुरुष, ( हियडियं के) पोताना हृदयने विषे शछित एवा (गणं के०) खनगरपामादिक जे मनोवां वित स्थानक, ते प्रत्ये (पत्ता के ) प्राप्त थाय ने ॥ ११॥ हवे गाथायें करीने बहुं सिंहनयनिरासकारक प्रनु माहात्म्य कहे . पऊलिानलनयणं, दूरवियारियमुझं महाकायं ॥ नद कुलिसघायविअलिअ, गइंदकुंजबलानोअं ॥१२॥ पणयससंनमपबिव, नहमणिमाणिकपमिअपमिमस्स ॥ तुह वयणपहरणधरा, सीहं कु-इंपि न गणंति ॥१३॥ अर्थः-(पालिथ के) प्रज्वलित एवो जे (अनल के० ) अग्नि, तेना सरखांडे ( नयणं के०) नेत्र जेनां एवा, तथा ( दूरवियारियमुहं के०) दूरथकी फाड्युं ने जहण करवाने अर्थे मुख, जेणे एवो, तथा (महा के०) महोटो डे ( कायं के०) देह जेनो एवो, तथा (नहकुलिस के०) नखरूप कुलिश जे वज्र, तेना (घाय के ) घात, एटले जे प्रहार, तेणें करी (विलिय के०) विदलित एटले विशेषे निन्न कस्यांडे (गरुंद के०) गजेंड जे हस्ती तेमनां जे (कुंजबल के०) कुंजस्थल तेना (आनोअं के०) आलोग एटले विस्तार जेणे एवो ॥ १५ ॥ अने (कुपि के०) क्रोधा यमान थयो एवो पण ( सीहं के०) सिंह जे जे तेने (नगणंति के०) नथी गणता, अर्थात् तेवा सिंहने विषे पण नयहेतुतायें करी संजावना करता नथी. ते कोण संजावना करतानथी ? तो के ( पणय के ) नम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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