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________________ २४० प्रतिक्रमणसूत्र. गंधारी मदजाला, माणवि वश्रुट तहय अनुत्ता॥ माणसि'महाणसिआ, विद्यादेवी रकंतु ॥ ७॥ अर्थः-अहिं शोल देवीयोनां नाम जे लखवां, ते 3 एटले प्रणवबीज, अने बीजुं ही एटले मायावीज, त्रीजुं श्री एटले लक्ष्मीबीज. एवां ए त्रण बीज पूर्वक लखवां तथा तेना अंतमां नमः पद पण लखवू, जेम के प्रथम ॐ ही श्री रोहिण्यै नमः। एवी रीतेंत्रण बीज आगल मूकीने सर्व शोल देवी योनां नाम केहेवां, बीजी प्रज्ञप्त्यै नमः। एम त्रीजी वज्रशृंखलायै नमः। ( तहय के०) तथा वली चोथी वजांकुश्यै नमः । पांचमी चकेश्वर्यै नमः। बही नरदत्तायै नमः । सातमी काल्यै नमः। आठमी महाकाल्यै नमः । (तह के०) तथा नवमीगौर्यै नमः ॥७॥ दशमी गांधार्यो नमः। अगीयारमी महाज्वाल्यै नमः । बारमी मानव्यै नमः। तेरमी वैरुट्यायै नमः । (तहय के०) तथा वली चौदमी अनुप्तायै नमः। पंदरमी मानस्यै नमः । शोलमी महामानस्यै नमः । ए शोल नाम, ( कार )ते प्रणवबीज तथा (ही) ते मायाबीज तथा (श्री) ते लदमी बीज ए त्रण बीज पूर्वक अने अंतमां नमः पद सहित लखवां. एवो आ नाय बे, तेवी ( विद्यादे वी के ) हे विद्यादेवी ! तमें (रकंतु के०) मारु रदण करो.॥७॥ हवे एकशो सीत्तेर जिनवरोर्नु उत्पत्तिस्थानक कहे .. पंचदस कम्म नमिसु, नप्पन्नं सत्तरं जिणाणसयं ॥ विविद रयणाश्वन्नो, वसोंदिरं हर उरिआइं॥ए॥ अर्थः-जंबूद्वीप, धातकीखंम, पुष्कराई लक्षण एवा साध्य छीपोने विषे पांच नरत देत्रो, पांच ऐवत क्षेत्रो अने पांच विदेह देत्रो, ए ( पंचदस के०) पन्नर, ( कम्मनूमिसु के०) कृषिवाणिज्यादि कर्म ते डे प्रधान जेमां एवी जे नूमि तेने कर्मचूमि कहियें, ते कर्मचूमिउने विषे (उप्पन्नं के०) उत्पन्न थयुं, जे कारण माटे उत्कृष्ट कालने विषे पांच जरत ने विषे पांच तीर्थंकर, पांच ऐवतने विषे पांच तीर्थकर, तथा एक महा विदेहने विषे बत्रीश विजयो, तेवा पांच महा विदेहोना एकशो ने शाउ वि जयो ,तेमांप्रति विजयें एकेक तीर्थंकर थाय बे, एम जेवारें कोश्पण देत्रने विषे तीर्थंकरनो विरह न थाय? तेवारें उत्कृष्टा एकशो सीत्तेर तीर्थंकर थाय ने माटें कर्मचूमिउँने विषे उत्पन्न थयुं एवं (सत्तरिंजिणाणसयं के) एक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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