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________________ तिजयपहुत्त अर्थसहित. २४१ शो सित्तेर जिनोनो समूह, ते श्री जितनाथ तीर्थंकरना समयने विषे होतो हवो. तेज॑नां नाम, तेज॑ना अंगवर्ण, ते मथुरास्थ स्तूपथ की उद्धार करेला पट्टिकायंत्रें करी जावां ते जिनसप्तत्यधिकशत केहेतुं बे ? तो के (विवि e ho ) विविध प्रकारना ( रयणाइ के० ) रत्नादिना ( वन्न के० ) वर्ण एटले श्वेत, पीत, रक्त, हरित, श्याम एवा वर्णोंयें करीने ( उवसोहिां ho) उपशोजित एटले अतिशोजित एवं बे. ते अमारां ( डुरिआई ho ) डुरितो जे बे, तेने ( हरउ के० ) हरण करो ॥ ए ॥ हवे ते केवा जिनोनुं ध्यान करवुं ? ते कहे बे. चनती सच्यइसयजुच्या, अहमदापाडिदेरकयसोदा ॥ तिचयरा गयमोदा, कावा पयत्तेां ॥ १० ॥ अर्थः- (चतीस सय जुया के०) चोत्रीश अतिशयोयें करीने युक्त, तथा वली केहेवा बे? तो के (महापामिर के०) आठ महाप्रातिहार्य तेणें (यसोहा के० ) करी बे शोजा जेमनी एवा, वली केहेवा बे ? तो के ( गयमोहा के० ) गयो बे मोह जेमनो एवा ( तियरा के० ) तीर्थंकरो, ( पत्ते के० ) प्रयतें करीने ( जाएवा के०) ध्यातव्य बे, अर्थात् हृद विषे चिंतनीय बे, एटले तीर्थंकरोनां एवा रूपनुं ध्यान करवुं ॥ १० ॥ हवे ए एकशो सीत्तेर तीर्थंकरोनो केहवो वर्ण बे ? ते कहे . वरकणयसंखविद्रुम, मरगयघणसन्निदं विगयमोदं ॥ सत्तरिसयं जिणाणं, सवामरपूइयं वंदे ॥ स्वाहा ॥ ११ ॥ अर्थः- केटला एक तीर्थंकरोनो ( वरकणय के० ) श्रेष्ठकनक सरखो पीत वर्ण बे, तथा केटलाएक तीर्थंकरोनो ( संख के०) शंखना सरखो वर्ण बे, तथा केटलाएक तीर्थकरोनो (विदुम के० ) प्रवालां सरखो वर्ष बे, तथा केटलाएक तीर्थंकरोनो ( मरगय के० ) मरकतमणिना सरखो वर्ण बे, तथा केटलाएक तीर्थंकरोनो ( घण के० ) मेघ तेना ( सन्निहं के० ) सर खो वर्ण बे, तथा ( विगयमोहं के० ) गयो के मोह जेथकी तेने विगत मोह कहियें. एवं, अर्थात् या गाथामां कहेला विविध वर्णवालुं एवं (स तरिसयं जिणाएं के० ) जिनोनुं सप्तत्यधिकशत. ते केहबुं बे ? तो के ( सवा ३१ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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