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प्रतिक्रमण सूत्र.
मां को लखवा. तिहां यंत्रना आरंजनी खाडी पंक्तिनां जे पांच कोष्टको बे, तेमध्यें लखवा योग्य अंकोने गाथायें करी देखाडे बे.
पणवीसा ययसीच्या, पन्नरस पन्नास जिणवर समूहो ॥ नासेन सयल डुरि, नविप्राणं नत्तिजुत्ताणं ॥ २ ॥
अर्थः- तिहां यंत्रनी यामी पंक्तिना पांच कोष्टको जे बे, तेना प्रथम कोष्टकम (पणवीसा के० ) पच्चीशनो अंक लखवो, (य के० ) तथा बीजा कोष्टकम (असा के०) एंशीनो श्रंक लखवो, तथा श्रीजुं कोष्टक तो म ध्यमांबे, तेथी तेमां तो पूर्वे का प्रमाणे (हि) अक्षर लखेलुंज बे, तथा चोथा कोष्टकमi (पन्नरस के०) पंदरनो अंक लखवो, तथा पांचमा कोष्ट कमां ( पन्नास के० ) पच्चासनो अंक लखवो. ए प्रमाणें लखेलो ( जिण वर के० ) सामान्य केवलीमां श्रेष्ठ एवा तीर्थकरोनो ( समूहो के० ) समु दाय तेनो यंत्र, ते (जत्तिजुत्ताणं के०) नक्तियें करी युक्त एवा ( जविया
के० ) जव्य जीवो जे बे, तेनां (सयल के० ) समग्र एवा ( डुरिअं ho ) डुरित जे पापकर्म तेने ( नासे के० ) नाश करो ॥ २ ॥ हवे ए यंत्रनी वीजी खाडी पंक्तिनां कोष्टकोने विषे जे क
लखवा योग्य बे, ते को कहे .
वीसा पणयालाविय, तीसा पन्नत्तरी जिणवरिंदा || गढ़ भूप रक साइणि, घोरुवसग्गं पण संतु ॥३॥
अर्थः- प्रथम कोष्टकने विषे ( वीसा के० ) वीशनो अंक लखवो, तथा बीज कोष्टकने विषे ( पण्याला विय के० ) पीस्तालीशनो अंक लखवो, तथा त्रीजा मध्य कोष्टकमां तो आगल कहेली रीतिप्रमाणें (प) र ल खायेलुंज बे, तथा चोथा कोष्टकमां ( तीसा के० ) त्रीशनो अंक लखवो. तथा पांचमा कोष्टकने विषे ( पन्नत्तरी क० ) पंचोतेरनो अंक लखवो. ए प्रमाणे सर्व मली एकशो सीतेर ( जिवरिंदा के० ) जिनवरो जे तीर्थं करो या ते, (गह के० ) मंगलादिक ग्रहो, (नू के० ) व्यंतर विशेष, ( रक के० ) राक्षस विशेष, ( साइणि के० ) शाकिनी ते यातुधानी विशेष,
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