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तिजयपहुत्त अर्थसहित.
२३५ के० ) शिष्य जे श्रीमुनिसुंदरसूरि, ते (नण के०) नणे ॥१॥इति॥३॥ . ॥ अथ तिजयपहुत्तनामकचतुर्थस्मरणस्य प्रारंजोऽयं ॥ तिजय पहुत्त पयासय, अह महापाडिदेरजुत्ताणं ॥
समयरिकत्त ग्ािणं, सरेमि चकं जिणंदाणं ॥१॥ अर्थः-९ ( जिणंदाणं के०) सामान्य केवलीने विषे इंछ तुल्य माटें जिनेंद्र कहिये ते जिनेंस्रोतुं (चकं के०) चक्र एटले वृंद अथवा चक्र एटले यंत्र तेनुं (सरेमि के०) स्मरामि एटले ध्यान करुं बुं. ते जिनेंसो केहवा ने ? तो के (तिजय के०) त्रण जगत् तेनुं (पहुत्त के०) प्रजुत्व जे ऐ श्वर्य तेने (पयासय के०) प्रकाशना करनारा बे, वली (अहमहापामिहेर के०) श्राप जे महाप्रातिहार्य तेणें करी (जुत्ताणं के०) युक्त जे. वली केहवा बे? तो के ( समय के०) काल विशेष उपलक्षणथी अहोरात्र ने प्रधान जेने विषे एवं जे (रिकत्त के०) क्षेत्र एटले पीस्तालीश लाख योजन प्रमाण अढीवीप लक्षण जे समयदेत्र के तेने विषे (ठियाणं के०) स्थित एटले वर्त्तता एवा उत्कृष्ट कालने विषे जेवारें कोइ पण क्षेत्रने विषे तीर्थंकरनो विरह होतो नथी तेवारें पंदर कर्मनूमि क्षेत्रने विषे उत्कृष्टथी एकशो नेसीत्तेर तीर्थंकरो समकालें होय , तेनुं हुं स्मरण करुं बुं ॥१॥
हवे ए एकशो ने सीत्तेर समय क्षेत्र स्थित जिनवृंदने एकशो सीत्तेर संख्याना अंकना प्रमाणवालो अने महोटुंबे माहात्म्य जेनुं एवो महा यंत्र बे, ते यंत्रनो उद्धार विधि सात गाथायें करी देखाडे जे.
ए यंत्रमा पांच कोष्टको ऊर्ध्व लखवां, अने पांच कोष्टको आमां लखवां, तेवारें पांच पच्चां पच्चीस कोष्टको थाय. तिहां मध्यने विषे पांच आमां कोष्टको जे बे, तेमां "क्षिप स्वाहा” ए पंचाक्षरी पंचमहाजूतात्मिका महाविद्या लखवी, तेमज वली उनां मध्यनां जे पांच कोष्टको ने तेमां पण "दिप ऊँ स्वाहा” ए पंचादरी महाविद्याज लखवी, तेमां (दि) ए पृथ्वी बीज , (प) ए अप्वीज बे, (5) ए तेजोबीज डे,(स्वा) ए पवनवीज डे, अने (हा) ए आकाशबीज बे. एम ए पांच बीजो मध्यनी आमी लीटीना तथा मध्यनी उनी लीटीना दरेक कोष्टकमांलखवां,अने बीजां कोष्टको जे
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