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तिजयपहुत्त अर्थसहित. २३४ ए सर्वथकी उत्पन्न थया एवा जे. (घोरुवसग्गं के० ) घोर उपसर्गों तेमने (पणासंतु के०) प्रकर्षे करीने नाशने पमामो ॥३॥
हवे ते यंत्रना मध्यमां रहेली मी पंक्तिनां पांच कोष्टकोमां तो पूर्वो क्त रीति प्रमाणे “दिप 3 वाह” ए पांच अदर लखेलाज , माटे ते पठीनी चोथी आमी पंक्तिमा जे लखवा योग्य अंको . ते कहे बे.
सित्तिरि पणतीसाविय, सही पंचेव जिणगणो एसो ॥ वादि जलजलण दरि, करि चोरारिमदानयं दरज ॥४॥ अर्थः-प्रथम कोष्टकने विषे (सित्तिरि के) सित्तेरनो अंक, बीजा कोष्ट कने विषे (पणतीसाविय के०) पांत्रिशनो अंक, त्रीजा कोष्टकने विषे पूर्वोक्त रीति प्रमाणे (स्वा)अदर लखेढुंज , ते पड़ी चोथा कोष्टकने विषे (सही के०) शानो अंक, तथा पांचमा कोष्टकने विषे (पंचेव के०) पांचनो अंक लखवो. ए प्रमाणे (एसो के०) ए मनमा प्रत्यक्ष एवो ( जिणगणो के० ) तीर्थक रसमूह, ते (वाहि के०) व्याधि, (जल के०) नदी समुशादि, अथवा पागं तरें (जर के०) ज्वर ते सन्निपातादिक, (जलण के0) अग्न्यादि, (हरि के०) व्याघ्र, (करि के ) उष्टहस्ती, (चोर के० ) तस्कर, (अरि के) शत्रु तेमनुं (महालयं के०) महोटुं जे जय, तेने (हरत के ) हरण करो ॥४॥ हवे आ यंत्रनी आमी पांचमी पंक्तिना कोष्टकोमां लखवा
__ योग्य जे अंको , ते कहे जे. पणपन्ना य दसेव य, पन्नही तहय चेव चालीसा॥
रकंतु मे सरीरं, देवासुरपणमिया सिझा ॥ ५ ॥ अर्थः-प्रथम कोष्टकने विषे (पणपन्ना के० ) पञ्चावन्ननो अंक, (य के० ) वली वीजा कोष्टकने विषे ( दसेव के ) दशनो अंक, (य के) वली त्रीजा कोष्टकने विषे पूर्वोत्तरीतिप्रमाणे (हा) अदर लखेबुंज बे, तथा चोथा कोष्टकने विषे ( पन्नही के० ) पांशठनो अंक, ( तह यचेव के )तेमज निश्चें पांचमा कोष्टकने विषे (चालीसा के ) चाली शनो अंक, एम सर्व अंकोना मली शरवाले एकशो सीत्तेर जिनो ते (मे के) महारं ( सरीरं के०) शरीर जे इंडियायतन, तेने ( रकंतु के०)
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