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________________ सकलाऽर्दत् अर्थसहित. २०ए बी, तेने विष प्रधान एवा जे श्रीतीर्थंकर, तेमनां (जुवनानां केश) जुवन जे चैत्य एटले जिनप्रतिमा , तेमने (जावतः के० ) जावथकी (अहं के०) हुँ ( नमामि के) नमस्कार करुं बुं ॥ ए॥ सर्वेषां वेधसामाद्य, मादिमं परमेष्ठिनम् ॥ देवा । धिदेवं सर्वज्ञ, श्रीवीरं प्रणिदध्महे ॥३०॥ अर्थः-( सर्वेषां के ) सर्व एवा (वेधसां के०) ज्ञाता पुरुषो ते मध्ये (आद्यं के०) प्रथम मुख्य एवा तथा (आदिमं के०) आदिम (परमेष्ठि नं के०) परमेष्ठिरूप एवा तथा (देवाधिदेवं के०) देवताउँना देव जे इंस तेना पण देव एवा तथा (सर्वज्ञ के ) सर्व पदार्थने जाणनारा एवा, (श्रीवीरं के) श्रीवीर नगवान् तेमनु (प्रणिध्महे के०)प्रकर्षे करी ध्यान करीयें बैयें ॥३०॥ देवोऽनेकनवार्जितोर्जितमदापापप्रदीपानलो, देवः सिध्विधूविशालहृदयाऽलंकारहारोपमः ॥ देवो ऽष्टादशदोषसिंधुरघटानिर्नेदपंचाननो, नव्यानां विदधातु वांबितफलं श्रीवीतरागोजिनः ॥ ३१॥ अर्थः-(श्री वीतरागः के) श्रीवीतराग एवा ( जिनः के) जिन ते(जव्यानां के ) नव्यजीवोने (वांछितफलं के०) वांडित एवा फनने (विदधातु के७) आपो. ते (देवः के०) वीतराग देव केहवा जे ? तो के (अनेक के०) अनेक एवा (जव के) जवकोमाकोमीने विषे (अर्जित के) संचेलां अने (ऊर्जित के०) घणां एवां जे (महापाप के०) महोटां पाप, तेने (प्रदीप के०) प्रकर्षे करी बालवाने अथ (अनलः के०) अग्निसमान , वली ते केहवा ? तो के (देवः के०)देव बे, एटले प्रकाशयुक्त बे, तथा वली केहवा बे? तो के (सिझिवधू के) मोदरूप जे स्त्री, ते संबंधी ( विशालहृदय के) विशाल हृदय तेने विषे (अलंकारहारोपमः के०) अलंकारहारनी उपमा जे जेमने एवा . वली ( देवः के०) देव केहवा जे? तो के (अष्टा दशदोष के ) अढार दोष तप जे (सिंधुरघटा के ) गजघटा तेहने (निर्जेद के) नेदवाने (पंचानन के के ) केसरी सिंह समान बे॥३१॥ २७ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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