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________________ २०२ प्रतिक्रमण सूत्र. श्री न चव्या, जे नलिनी गुल्मविमाने पहोता, तेत्रीशमा (धन्नो के०) धन्नो, ते शालिनानो बनेवी, चोत्रीशमा (श्लाश्पुत्तो के०) एलाचीपुत्र, जे नाट क करतां थकां केवलझान पाम्या, पांत्रीशमा (चिलाश्पुत्तो के०) चिलाति पुत्र, जेनुं शरीर, कीमीयोयें चालणीप्राय कीg, तो पण उपशम, विवेक अने संवरना अर्थविचारथकी न चूक्या, जे अतिशय ज्ञान पामी स्वर्गगा मी थया, (च के०) वली बत्रीशमा (बाहुमुणी के०) युगबाहु मुनि ॥ ४ ॥ अङगिरि अजरस्किअ, अजसुहबी उदायगो मण गो॥ कालयसूरि संबो, पअन्नो मूलदेवो अ॥५॥ अर्थः-सामनीशमा (अङगिरि के.) आर्यमाहागिरिजी, श्रीथूविना स्वामीना शिष्य, आमत्रीशमा (अररिक के०) आर्यरदित महाराजा, उंगणचालीशमा (अङसुहबी के०) आर्यसुहस्ती सूरि, थूलिनजी जेना गुरु हता, चालिशमा (उदायगो के०) उदायिराजा, ते श्रीनगवतीसूत्रं प्रसि क. एकतालीशमा ( मणगो के) मनकपुत्र, जेने अर्थे श्रीदशवैका लिक सूत्र नीपन्युं, बहेंतालीशमा (कालयसूरिके०) श्रीकालिकाचार्यश्रीप नवणासूत्रना कर्ता, निगोदखरूपना वक्ता, तालीशमा (संबो के०) सांब कुमार, अंबवतीना पुत्र, चुम्मालीशमा (पद्युन्नो के०) प्रद्युम्न कुमार,रुक्मि णीना पुत्र, पीस्तालीशमा ( मूलदेवो के) मूलदेवराजा, जेणें तपस्वी साधुने निर्दोष अमददीधा ॥ ५ ॥ पनवो विन्दुकुमारो, अद्दकुमारो दढप्पहारी अ॥ सिजंस कूरगञ, सिङनव मेदकुमारोअ॥६॥ अर्थः- तालीशमा ( पत्नवो के ) प्रनवस्वामीजी, जेने श्रीजंबुखा मीयें प्रतिबोध्या, सुमतालीशमा ( विन्दुकुमारो के० ) विष्णुकुमार, जेणे श्रीसंघने कारणे लाख योजन- रूप विकूव्र्यु, अमतालीशमा (अद्दकुमारो के ) आईकुमार, जे पूर्वनवें संयम विराधवाथकी अनार्यदेशमां उपन्या, अने अजयकुमार मोकलेली जिनप्रतिमा देखीने जेने पूर्वजव सांजस्यो, साधु थया, जंगणपञ्चाशमा (दढप्पहारी के ) दृढप्रहारी चोर, चार हत्याना . करनार; मुनि थश्ने मोदें गया, ( चके० ) वली पञ्चाशमा (सिऊंस के०) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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