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नरदेसरनी सद्याय अर्थसहित. ११ कुंमार, श्रेष्ठिपुत्र, (च के०) वली पंदरमा(सुकोसल के०) सुकोशलमुनि, जे मनुं शरीर, वाघणीयें नदण कीg, शोलमा (पुमरि के०) श्रीपुमरिकजी श्रीप्रथम तीर्थंकरना प्रथम गणधर, वली जे चैत्री पूनमने दिवसें पांचको मी मुनि संघातें सिझगिरिनी उपर सिकनगरीमां पहोता, सत्तरमा (केसि के०) केशीकुमार, ते परदेशी राजाना गुरु, अढारमा (करकंम् के०)करकं, प्रत्येकबुद्ध मुनि, जे जर्जरीनूत वृषन्न प्रत्ये जोश्ने साधु थया ॥२॥
हल्ल विहल्ल सुदंसण, साल माहासाल सालिनद्दो
अ॥जद्दो दसन्ननदो, पसन्नचंदो अ जसनदो॥३॥ अर्थः-उगणीशमा ( हल के ) हदयकुमार, वीशमा ( विहल के ) विहदयकुमार, ए बेहु पण श्रेणिकराजाना पुत्र जाणवा. एकवीशमा (सुदंस ण के०) सुदर्शन शेठ, जेना शीलने प्रनावें शूलिमांथी सिंहासन थयुं, बावी शमा (साल के०) साल मुनी, त्रेवीशमा (माहासाल के०) माहासाल मुनि, ए बे श्रीगौतमखामीजीयें प्रतिबोध्या, चोवीशमा (सालिनदोष के) शालिन प्रसिकजोगी, श्रेष्टिपुत्र, पञ्चीशमा (जद्दो के) जवाहु स्वामी चतुर्दश पूर्वना जाण, बबीशमा (दसन्ननदो के०) दशार्णन, ते रिकिगार वें, जे श्रीवीरने वांदवा आव्या, त्यां संयम लीधो, सत्तावीशमा (पसन्नचंदो अ के०) प्रसन्नचं राजर्षि, जेणें रौऽध्यानथी सातमी नरकनां दलीयां मेलव्यां, तेने शुक्नध्यानथी विखेरीने केवलज्ञान प्रगट कीधुं, अहावीशमा (जसनदो के०) श्रीयशोजप्रसूरि, ते श्रीजप्रवाहुखामीना गुरु जाणवा ॥३॥
जंबुपतु वंकचूलो, गयसुकुमालो अवंतिसुकुमालो॥
धन्नो इलाइपुत्तो, चिलाइपुत्तो अबाहुमुणी ॥४॥ अर्थः-उगणत्रीशमा (जंबुपहु के० ) जंबुप्रनुस्खामी. जे अष्टवधू अने नवाणुं क्रोम अव्य, त्यागीने चरम केवली थया, त्रीशमा (वंकचूलो के०) वंक चूलराजकुमार,जे कर्मना वशथकी चोरना स्वामी श्रया, पठी साधुयें दीधेलां व्रत पालीने देवलोकें गया. एकत्रीशमा (गयसुकुमालो के) गजसुकुमार, श्रीकृष्णजीना न्हाना जाई, सोमलनो करेलो अग्निनो उपसर्ग सहन करी ने जे दीदाने दिवसेंज मोदे गया, बत्रीशमा (अवंतिसुकुमालो के ) अवंतिसुकुमार, जेनुं शीयालिणीयें शरीर जदण कीडूं, तोपण चारित्र धर्म
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