SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 200
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७० प्रतिक्रमण सूत्र करवा योग्य . ( तं के ) ते प्रत्यद पणे ( जेसिं के) जेहना ( दढवयं के०) दृढव्रत प्रत्ये (नयवं के०) जगवान् ( महावीरो के०) श्रीमहा वीर खामी, पोतें श्रीमुखें (पसंस के०) प्रशंसे बे, वखाण करे , माटें ते धन्य कृतपुण्य जाणवा ॥२॥ पोषध व्रत विधियें लीधुं होय, विधियें पायुं होय, विधि करतां जे कां अविधि हुई होय, ते सर्व, मन, वचन अने कायायें करी मिलामि डुक्कम इति ॥ ४ ॥ ॥अथ नरहेसरनी सजाय प्रारंजः ॥ जरहेसर बाहुबली, अन्नय कुमारो अ ढंढणकुमारो ॥ सिरि अणियानत्तो, अश्मुत्तो नागदत्तो अ ॥१॥ अर्थः-एक (जरहेसर के) श्रीनरतेश्वर, प्रथम चक्रवर्ती श्रीषनदेव ना पुत्र, वीजा (बाहुबली के०) बाहुबली ते पण श्रीषनदेवना पुत्र, नरतेश्वर करतां पण अधिक बलवंत जाणवा, त्रीजा ( अनयकुमारो के) अन्नयकुमार, श्रेणिकराजाना पुत्र, (च के०) वली चोथा (ढंढणकुमारो के०) ढंढणकुमार, ते श्रीकृष्णजीना पुत्र. पांचमा ( सिरिज के ) श्रीक, ते श्रीश्रू विनउजीना न्हाना नाई, उहा (अणियाउत्तो के) अनिकापुत्र आचार्य, जे गंगा नदी उतरतां केवलज्ञान पाम्या, सातमा (अश्मुत्तो के) अति मुक्त कुमार, जेणे उ वर्षनी अवस्थामा श्रीवीरपासेंथी दीदा लीधी, (चके ) वली आठमा ( नागदत्तो के) नागदत्त, श्रेष्ठी पुत्र, अदता दानना त्यागी जाणवा ॥१॥ मेअज थूलिनद्दो, वयररिसी नंदिसेण सीहगिरी॥ कयवन्नो अ सुकोसल, घुमरि केसि करकंमु॥॥ अर्थः-नवमा (मेअऊ केए) मेतार्यमुनि, जेने माथे सुवर्णकारें आलां चांबमां वीट्यां, दशमा ( शूलिनद्दो के) श्रीथूलिजमुनि, जेणे कोश्यावेश्याने घरे चोमासुं कीg, अने अखंग शील राख्युं, तथा वेश्याने श्रा विका कीधी, अगीयारमा (वयररिसी के ) वज्रशषि एटले वज्रस्वामी, बारमा (नंदिसेण के०) नंदिषेणजी, जेणें वेश्याने घरे रहीने बार वर्षपर्यंत प्रतिदिवस दश दश जण प्रतिबोध्या, तेरमा (सीहगिरी के०) श्रीसिंह गि रिजी महाराज, ते श्रीवज्रवामीना गुरु, चउदमा (कयवन्नो के०) कृतवर्ण For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy