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पोसहनु पञ्चकाण अर्थसहित. २७ए व्यापार, तेनो सर्वथा निषेध करे, (चविहेपोसहं के०) ए चार प्रकारना पोषधने विषे (गमि के) हुं तिष्टुं, रहुं, अंगीकार करुं बुं, (जाव के०) ज्यां सुघी (अहोरत्तं के०) दिवस अने रात्रि मती आठ पहोरें पोषधप्रत्ये अ थवा (जावदिवसं के० ) ज्यां सुधि दिवस प्रत्ये क्रमण के त्यां सुधि चार पहोर पोषधवत प्रत्ये, अथवा (जावरत्तं के०) ज्यांसुधि रात्रिप्रत्ये क्रमण ने त्यांसुधी चार पहोर पोषधवत प्रत्ये (पखुवासामि के०) हुं पर्युपासु, से, त्यां सुधि अने थोमोक दिवस होय तेवारें रात्रिपोसह जो लीये तो “जा वदिवसं रत्तं पञ्जावासामि” एवो पाठ कहे, ज्यां सुधि थोमो दिवस होय, त्यांथी लेश्ने आखी रात्रि सुधी पोसह निरतिचार पा, (छविहंतिवि हेणं के०) सुविध, त्रिविधं करी इत्यादिनो अर्थ सुगम ने ॥॥इति ॥६॥
॥ अथ पोसह पारवानी गाथा ॥ सागरचंदो कामो, चंदवमिंसो सुदंसणो धन्नो ॥
जेसिं पोसद पमिमा, अखंमिश्रा जीवियंतेवि ॥१॥ अर्थः-(जीवियतेवि के०) जीवितनो अंत थाते थके पण एटले श्रा युनो विनाश थाते थके पण, (जेसिं के०) जेहनी (पोसहपमिमा के) पोषधप्रतिमा, ( अखं मिआ के०) अखंमित रही, संपूर्ण रही, ते श्रावक (धन्नो के०) धन्य बे, ते श्रावकोनां नाम कहे . (सागरचंदो के०) एक सागरचंड कुमार, बीजो (कामो के०) कामजी, त्रीजो (चंदवमिंसो के०) चंझावतंस राजा चोथो (सुदंसणो के०) सुदर्सन शेठ ॥१॥
धन्ना सलादणिया, सुलसा आणंद कामदेवाय ॥ जेसिं पसंसद नयवं, दढवयं तं महाविरो ॥२॥ पोसह विधिं लीधनं, विधिं पारिलं, विधि करतां जे कांइ अविधि हुई दुइ,ते सवि हुँ मन, वचन,
कायायें करी मिना मि उक्कम ॥ इति ॥ ४ ॥ अर्थः-एक (सुलसा के०) सुलसाश्राविका, बीजा (आणंद के०) श्रा नंद श्रावक (य के०) वली त्रीजा (कामदेवा के०) कामदेव श्रावक, ए त्रणे (धन्ना के०) धन्य डे (सलाहणिजा के०) श्लाघनीय एटले श्लाघा
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