________________
जुवन देवता स्तुति अर्थसहित. १६५
॥ अथ जुवनदेवतादिस्तुतिः ॥ नुवणदेवयाए करेमि कानस्सग्गं० ॥ यस्याः देत्रं समाश्रित्य, साधुनिः साध्यते क्रियाः ॥ सा दे
त्रदेवता नित्यं, नूयान्नः सुखदायिनी ॥१॥ अर्थः-(नः के ) अमने ( सा के ) ते (देवदेवता के०) क्षेत्र देवी, (नित्यं के ) निरंतर, (सुखदायिनी के०) सुखनी देवावाली (नूया त् के०) होय, ते क्षेत्रदेवी केहवी ? तो के (यस्याः के०) जेना (के त्रं के ) देत्रप्रत्ये (समाश्रित्य के०) समाश्रयीने एटले अंगीकार करीने (साधुनिः के० (साधुयें (क्रियाः के०) तपःसंयमरूप धर्मक्रियार्ड (सा ध्यते के०) सधाय बे, अर्थात् कराय ॥१॥
झानादिगुणयुतानां, नित्यं स्वाध्यायसंयमरतानाम्॥विधा तुजुवनदेवी, शिवं सदा सर्वसाधूनाम् ॥२॥इति ॥४०॥
अर्थः-( जुवनदेवी के०) जुवननिवासिनी देवी ने ते, (सर्वसाधूनां के०) सर्व साधुउने ( शिवं के०) शिव एटले परम कल्याण, ते प्रत्ये (सदा के ) निरंतर, (विदधातु के०) करो, ते सर्व साधु केहवा ? तो के (ज्ञानादिगुण के०) झानादिक गुणें करीने (युतानां के०) युक्त ने स हित बे. वली ते सर्वसाधु केहवा ? तो के (नित्यं के) निरंतर जे (स्वा ध्यायसंयमरतानां के०) वांचनादिक पांच प्रकारनो स्वाध्याय अने आश्र वनिरोध रूप सत्तर प्रकारनो संयम, तेने विषे रत , एटले आसक्त बे, मग्न बे. ए जुवनदेवतानो काउस्सग्ग श्री नबाहुखामीयें आवश्यकमां करवो कह्यो , ते माटें एमां मिथ्यात्व समजवू नहीं ॥२॥ इति ॥ ४० ॥
॥अथ श्रवारजेसु मुनिवंदन ॥ अमाइजेसु दीवसमुद्देसु, पनरससु कम्मनूमीसु ॥ जावंत केवि साहू, रयदरण गुब पडिग्गधारा ॥१॥ पंचमहत्वयधारा, अछारस सदस्स सीलंग धारा ॥ अकयायारचरित्ता, ते सधे सिरसा मण सा मबएण वंदामि ॥ ॥ इति ॥ ४२ ॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org