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________________ सबस्सवि तथा श्रुतदेवता स्तुति अर्थसदित. १६३ अर्थः-(सबस्सविदेव सिथ के०) सर्वे पण दिवस संबंधी अतिचार ते (उचिंतिथ के०) मुश्चिंतित जे परषादिक पुष्ट कार्य तेने चिंतववाथकी थयो, वली केहवो ते दिवस संबंधि अतिचार? तो के (नासिब के) पुर्जाषित जे उपयोग रहित अनिष्ट पुष्टादिक नाषा तेवी नाषा बोलवा थकी थयो, वली केहवो ते दिवस संबंधि अतिचार ? तो के (उच्चिहिय के०) उश्चेष्टित जे उपयोग रहित हालवा चालवाथकी तथा कामासना दिक एवी कायनी उष्ट चेष्टारूप प्रवृत्ति, ते प्रवृत्ति करवाथकी थयो, तेनुं मिथ्या:कृत देवाने (नगवन् के०) हे नगवन् ! (श्वाकारेण के०) पो तानी श्छायें करी (संदिसह के०) मुऊने श्राज्ञा करो अहिंयां गुरु आज्ञा आपे पड़ी शिष्य कहे. (श्छ के० ) हुँ एहीज श्छु बु. (तस्समिबामि उक्कडं ) ए पदोनो अर्थ पूर्ववत् जाणवो ॥ १॥ इति ॥ ३ ॥ ॥अथ श्रुतदेवतास्तुतिः॥ सुअदेवयाए करेमि कानस्सग्गंग ॥ सुअदेव या नगवई, नाणावरणीय कम्म संघायं॥तेसिं खवेन सययं, जेसिं सुयसायरे नत्ती ॥१॥ अर्थः-( सययं के०) सततं एटले सदा निरंतर, (जेसिं के०) जे जव्य पुरुषोनी ( सुयसायरे के० ) श्रुतिसागरने विषे (जत्ति के० ) जक्ति बे, एटले अंतर प्रीति ने ( तेसिं के० ) ते पुरुषो संबंधी (नाणावरणीय कम्म के० ) ज्ञानावरणीयकर्मना ( संघायं के० ) संघात एटले समूह ते प्रत्ये (सुअदेवया के) श्रुतदेवता, वली ( नगवई के) जगवती जे सर खती , ते (खवेल के०) खपावो एटले दय करो ॥ १॥ ए श्रुतदेवता श्रुतसिद्धांतनी अधिष्ठायिका जे सरस्वती, तेने आराधवा निमित्त काउ स्सग्ग करवो. एमां वंदणवत्तीआए ए पाठ न कहिये, अन्नब उससिएणं ए पाउज कहीये. ए गाथा श्रीपातिक सूत्र सिझांतने बेहडे ने, तेजणी काउस्सग्ग करतां मिथ्यात्वनी शंका न करवी. आ गाथामां लघु बत्रीश, अने गुरु बे; मली सर्वाक्षर अमत्रीश २ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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