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________________ २६२ प्रतिक्रमण सूत्र. येषामनिषेककर्म कृत्वा, मत्ता दर्षनरात् सुखं सुरेंजाः ॥ तृ णमपि गणयंतिनैव नाकं,प्रातःसंतु शिवाय ते जिनेंतः॥२॥ अर्थः-(ते के ) ते ( जिनेंसाः के०) श्रीजिनेप्रोजे तीर्थंकरो, ते (प्रात के ) प्रत्नात समयें (शिवाय के०) शिवने एटले निरुपवने अर्थे (संतु के० ) था. ते जिनेंसो केहवा बे? तो के (येषां के०) जे जिनेंमोना (अनि षेककर्म के० ) स्नानकर्म कार्यप्रत्ये (कृत्वा के०) करीने (हर्षजरात् के ) हर्षना जर एटले समूहथकी (मत्ता के०) माता थका मग्न थका (सुरेंजाः के०) देवेंसो जे , ते ( नाकं के० ) देवलोक संबंधी जे ( सुखं के) सुख तेने ( तृणमपि के ) तृणतुल्य पण (नैव के) नहींज (गणयंति के०) गणे जे. अर्थात् जिनेंना अनिषेक सुखने पामीने देवता उ स्वर्गसुखने तृणसमान पण नथी मानता ॥२॥ कलंकनिर्मुक्तममुक्तपूर्णतं, कुतर्कराहुग्रसनं स दोदयम् ॥ अपूर्वचं जिनचंन्नाषितं, दिनाग मे नौमि बुधैर्नमस्कृतम् ॥ ३ ॥ इति ॥ ३६॥ अर्थः-( जिनचंजनाषितं के०) जिनचंड संबंधि जाषित जे आगम ते प्रत्यें (दिनागमे के० ) प्रजातसमये ( नौमि के० ) हुं स्तवं . ते जिन चंदनाषित केहबु डे ? तो के (कलंकनिर्मुक्तं के०) कलंक रहित एबुं अ ने (अमुक्तपूर्णतं के०) नथी मूकाणी पूर्णता जेनी अने वली (कुतर्क राहुग्रसनं के०) कुतर्क करनारा एवा जे परदर्शनीरूप राहु तेने ग्रसन हार एटले नदण करनार एवं , तथा (सदोदयं के०) सदा निरंतर उदय एटले उगेलो एवो एक (अपूर्वचंडं के०) अपूर्व चंअसदृश बे, एटले जिनागमरूपचंडमानी तुल्य बीजो को चंउमा नथी, वली ते जिनचंजना षित केहबुं ? तो के (बुधैर्नमस्कृतं के० ) बुधोयें एटले पंमितोयें कस्यो नमस्कार जेने, एवं ३ ॥३॥ इति स्तुतिसूत्रार्थः ॥ ३६ ॥ ॥ अथ सबस्स वि देवसियं लिख्यते ॥ सवस्सवि देवसिअ, उचिंतिअ, नासिअ, उच्चिहिअश्वाकारेण संदिसह नगवन् श्वं तस्स मिबामि उक्कम॥१॥इति ॥ ३७॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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