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________________ विशाललोचन अर्थसहित. १६१ बे, ते रूप ( विकच के० ) विकखर प्रफुल्लित (अरविंद के०) अरविंदनामें जे कमल तेनी ( राज्या के ) राजी एटले श्रेणीयें करीने, (सदृशैः के०) सरखानी साथे ( संगतं के०) मलवं, ते (प्रशस्यं के ) अति रूहुँ प्र शंसा करवा योग्य जे. (इति के० ) ए प्रकारें ( कथितं के ) कथु बे. जेम के सरखे सरखां मले ते शोने, माटें ते सुवर्णमय नवकमल अने प्रजुनां चरण, ए बेहु कमलो मलवाथी अत्यंत शोजा थई ॥२॥ कषायतापार्दितजंतुनिर्वृति,करोति यो जैनमुखां बुदोगतः॥स शुक्रमासोनववृष्टिसंनिनो, दधातु तुष्टिं मयि विस्तरो गिराम्॥३॥इति ॥ ३५॥ अर्थः-(स के०) ते (गिरां के) सिद्धांतरूपवाणीनो (विस्तर के०) विस्तार ते, (मयि के०) महारे विषे ( तुष्टिं के ) तुष्टिप्रत्यें संतोषप्रत्ये (दधातु के०) करो, ते वाणीनो विस्तार केहवो ले ? तो के (यो के०) जे वाणीनो वि स्तार, ( कषाय के) कषायरूप ( ताप के०) तापें करीने (अर्दित केण्) पीमित एवा ( जंतु के०) प्राणीयो तेने ( निति के० ) शांति स माधिप्रत्ये ( करोति के०) करे . वली (यो के० ) जे (जैनमुख के०) जिनराजना मुखरूप (अंबुद के) मेघ तेथकी (जगतःके) उपज्यो बे. वली (यो के०) जे (शुक्रमास के) ज्येष्ठमासथकी (उन्नव के०) उपन्यो एवो जे(वृष्टि के०) वर्षाद तेनी (संनिनो के०) सरखो ॥३॥ इति ॥ ३५॥ ॥ अथ विशाललोचन ॥ विशाललोचनदलं, प्रोद्यदंतांशुकेसरम् ॥ प्रातरिजिनेंस्य,मुखपद्मं पुनातु वः॥१॥ अर्थः-(वः के) तुमने (प्रातः के ) प्रजातसमयें ( वीरजिनें स्य के) श्रीवीरजिनेंस संबंधी (मुखपद्मं के०) मुखकमल , ते (पुना तु के) पवित्र करो, ते मुखकमल केहबुं बे ? तो के ( विशाल के ) वि स्तीर्ण ( लोचन के ) नेत्ररूप (दलं के ) पत्र जे जेने विषे वली केह ले ? तो के (प्रोद्यत् के०) अत्यंत ऊलहलता एवा (दंतांशु के०) दांत नां किरणरूप ( केसरं के० ) केसर सुगंधना कणीया जे जेने विषे ॥१॥ २१ Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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