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________________ अथ सातलाख तथा अढारपापस्थानक अर्थसहित. १२७ तथा ( तिएहंगुणवयाणं के० ) एकदिशि परिमाणवत, बीजें उपत्नोगपरिनोगपरिमाणव्रत, त्रीजुं अनर्थदंमविरमणव्रत, ए त्रण गुणव्रतमाहेथी तथा (चउएहंसिकावयाणं के) एक सामायिकवत, बीजुं देशावकाशिक व्रत, त्रीजु पोषधोपवासव्रत, चोथु अतिथिसंविनागव्रत, ए चार शिदात्रतमाहेथी, घणुं शुं कहियें ? परंतु ( बारस विहस्स के० ) ए पूर्वोक्त छादशविध एटले बार प्रकारना व्रतरूप (सावगधम्मस्स के०) श्रावक संबंधी जे धर्म ते मांहेथी महारे जीवें (जंखं मियं के०) जे खंमयुं, एटले देश थकी नंग कीधो, (जंविराहियं के ) जे विराध्युं एटले सर्वथकी जंग कीधो, ( तस्स के ) तेहर्नु ( उक्कम के०) पुष्कृत एटले पाप, ते (मि के०) मने जे लाग्युं ते ( मिला के) मिथ्या था, एटले निष्फल था ॥१॥ एमां लघु अदर एकशो उंगणचालीश अने गुरु अदर 5गणत्रीश, सर्व मली एकशो ने अमराव अदरो ॥ इति ॥ २० ॥ ॥ अथ सात लाख ॥ सात लाख पथिवीकाय, सात लाख अप्पकाय, सात लाख तेनकाय, सात लाख वानकाय, दशलाख प्रत्येक वनस्पति काय, चनद लाख साधारण वनस्पतिकाय, बे लाख बेंडि य, बे लाख तेंज्यि, बे लाख, चौरिंख्यि, चार लाख देवता, चार लाख नारकी, चार लाख तिर्यंच पंचेंजिय, चौद लाख मनुष्य, एवंकारें चोराशी लाख जीवायोनिमांदे मदारे जीवें जे कोइजीव दण्यो होय, दणाव्यो दोय, दणतां प्रत्ये अनुमोद्यो दोय,ते सर्वे मनें, वचनें, कायायें करी तस्स मिहामि उक्कम ॥२॥ति ॥॥ एनो अर्थ सुगम ॥ ॥ अथ अढार पापस्थानक ॥ पहेले प्राणातिपात, बीजे मृषावाद, बीजे अदत्तादान, चोथे मैथुन, पांचमे परिग्रद, के क्रोध; सातमे मान, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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