SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 130
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रतिक्रमण सूत्र. ते ( निखिल के० ) निःकांदित पुरुष, लक्षण जाणवू, त्रीजो धर्मना फलमां संदेह न आणवो, एटले श्रीजिनधर्मने विषे क्रिया अनुष्ठानादिक ना फलने विषे संदेह करवो नहिं. अथवा साधु, साधवीनां मलमलिन शरीर तथा वस्त्र देखी, उगंडा करवी नहीं, निंदा करवी नहीं, ग्लानि कर वी नहीं, ते (निवितिगिछा के) निर्विजुगुप्स पुरुष- लक्षण जाणवू. चोथु अज्ञानी, मिथ्यात्वीनां क्रिया, कष्ट, कांश करामत चमत्कार देखीने तेनी उपर व्यामोहित न था, तथा ए लोकोमां पण काश्क ले? एवो पण मनमां विचार न करवो. तथा श्री जिनशासनने विषे नवतत्व समाचारी प्रमुखमां मुंफावं नहिं, तेमां प्रवीण होवु, ते (अमूढ दिछीथ के०) अमूढदृष्टि पुरुषy लक्षण जाणवू, पांचमुं सम्यक्त्वधारी गुणवंतना अल्प गुणनी पण श्रद्धा पूर्वक प्रशंसा करवी, मुखें करी प्रकाशवी, ते ( उववूह के०) उपबृंहक पुरुष- लक्षण जाणवं. बहुं श्रीजिनधर्मथकी पमता प्राणीने सहाय आ पीने धर्ममां स्थिर करवो, अथवा जे जीव, श्रीजिनधर्म नथी पाम्या, ते जीवने हितोपदेशादिकनुं सहाय आपीने श्रीजिनधर्मने विष स्थापवो, स्थिर करवो, ते (थिरीकरणे के०) स्थिरीकार पुरुष- लक्षण जाणवं, सातमो साधर्मिकनी विशेष नक्ति करवी तथा सर्व जीवने विषे करुणा, मैत्री जावना करवी, ते ( वबल के०) वात्सल्यपुरुषतुं लक्षण जाणवू. आठमो जे रीतें अन्य दर्शनी लोक पण जैनशासननी अनुमोदना करे, मिथ्यात्व मत मूकीने जैनमतने आदरे, तेम करवं, एटले एवां कार्य करवां, के जे थकी जैनशासन दीपे, घणां लोक बोधवीज पामे, ते (प्पन्नावणे के०) प्राजाविक पुरुष- लक्षण जाणवू, ए (अह के०) आठ लदण दर्शनाचार नां जाणवां. आहिं लक्षण शब्द आचार ग्रहण करवो. एवी रीतें प्रवर्तवू,ते ने दर्शनाचार कहियें, एथी विपरीत प्रवर्ते, तो अतिचार लागे ॥३॥ ___ हवे चारित्राचार कहे . पणिहाण जोगजुत्तो, पंचदिं समिईहिं तिहिं गुत्तीहिं॥ एस चरित्तायारो, अविहो दोश् नायवो ॥ ४॥ अर्थः-(पणिहाणजोग के०) प्रणिधान एटले स्थिरयोग, संयम व्यापार, तेणें करी एटले एकाग्र सावधान पणे करी मन, वचन, तथा कायाना Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy