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________________ अतिचारनी आठ गाथा अर्थसहित, 222 योग सर्व चारित्र पालवाने विषे ( जुत्तो के०) युक्त होय एवो, (एसचरित्ता यारो के०) ए चारित्राचार, ते (पंचहिं समिहिं के ० ) पांच समिति तेणें करी, तथा ( तिहिंगुती हिं के०) त्रण गुप्ति तेणें करी (विहो के०) अष्टविध एटले आठ प्रकारें ( होइ के० ) बे, ते ( नायवो के० ) जाणवो. ते अष्ट विध जे पांच समिति ने त्रण गुप्तिनां नाम गल नवकारना अर्थमां श्री आचार्यनां विशेषणमां श्राव्यां बे, माटें यहीं नथी लख्यां. ए आठ बोलें प्रवर्त्त, तेने चारित्राचार कहियें, अने ए पांच समिति ने त्रण गुप्ति न पाले, तो चारित्राचारना अतिचार लागे, तेमाटें साधुने निरंतर वने श्रावकने सामायिक पोसह लीधे ए पांच समिति ने त्रण गुप्ति अवश्य मालवी ॥४॥ हवे तपाचार कहे बे. बारसविदंमिवि तवे, सनिंतर बादिरे कुसल दिठे ॥ गिलाइ अणाजीवि, नायवो सो तवायारो ॥ ५ ॥ अर्थः- (सो के० ) ते ( तवायारो के० ) तपाचार, ते (बारस विहं मि वि तवे के० ) बार प्रकारना तपने विषे पि एटले निश्चें ( नायवो के० ) जावो. ते तपाचार केहवो बे ? तो के ( अ गिलाइ के० ) ग्लानि जाव एटले डुगंछाजाव रहित ने एटले तप करतां डुगंछा करीने तेनो जंग करे नहीं, वली (अणाजीवी के० ) अशनादिक आजीविकायें करी रहित बे, एटले हुं जो तप करूं, तो तपस्वी कहेवाजं ? पेट जराइ चाले ? मने लोको तपखी जाणी धन प्रमुखवडे महारी जक्ति करे ? एवी बुद्धी तप न कर, वली ते द्वादशविध तप केहवं बे ? तो के ( सनिंतरबा हिरे के ० ) a नेद अन्यंतराने व नेद बाह्य सहित बे. वली केहवुं बे ? तो के (कुसल के०) तीर्थंकरोयें (दिट्ठे के०) उपदिष्टयुं बे, प्रकाश्युं बे, एवा तपमां प्रवर्त्ततुं, ने तपाचार कहियें, एथी विपरीत प्रवर्त्ते, तो अतिचार लागे ॥ ५ ॥ हवे ए तपाचारमां बाह्य तपना व नेद विवरीने कहे . सण मूणोयरिया, वित्ती संखेवणं रसच्चार्ज ॥ काय किलेसो संली, याय बघो तवो दोइ ॥ ६॥ अर्थः- पहेलुं (अणसणं के० ) अशनादिक चार आहारनो त्याग थोमा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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