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________________ २०३ प्रतिक्रमण सूत्र. रने उच्चारवे बीजो श्रावत थाय. तेमज वली (का) अने (य) एबे अदरें त्रीजो आवत थाय. पनी संफास शब्द कहेतो गुरुने पगें मस्तक लगाडे. वली बेहु हाथ कमलकोशने आकारें जोमी,माथे चमावी “खमणिजो ने किलामो अप्पकिलंताणं बहुसुन्नेण ने दिवसो वश्कतो” एवो पाठ कहे.पठी बेहु हाथ मस्तकथी उतारी जत्ताने इत्यादि कहेतो वली पण त्रण आवर्त करे, तिहां पूर्वली पेरें दश आंगुली सामसामी करी, गुरुने पगें हाथ लगामतो पहेढुं (ज) अदर मंदखरें कहे, बीजुं हाथ उपामतो (त्ता) अक्षर मध्यमखरें कहे, त्रीजु (ने) अदर ललाटें हाथ फरसतो उंचेखरें कहे. ए त्रण स्थानकें त्रण अदर उच्चारतां प्रथम आवर्त थाय. तेवी रीतेंज वली (ज) (व) (णि) ए त्रण अदर त्रिविधसादें करी त्रण स्थानकें उच्चारतां बीजो आवर्त्त थाय. तेमज वली (ऊं) (च) (ने) ए त्रण अदर पूर्व रीतें जच्चारतां त्रीजो आवर्त्त थाय. एवं उ आवर्त थया. पडी बे हाथ अने मस्तक गुरुने पगें लगामी “खामेमि खमासमणो देवसियं वश्वमं” कहे पठी उन्नो थर रजोहरणे करी पाबली नूमि प्रमार्जतो मुखथकी “श्रावसि आए कहेतो थको अवग्रहथी बाहेर नीकले. ए अवग्रहमध्येथी बाहेर नीकलवा रूप आवश्यक जाणवू. पठी उन्नो रही बे हाथे योगमुजा पगे जिनमुखा साचवतो “पमिकमामि खमासमणाणं” इत्यादिक संपूर्ण बेदमा पर्यंत सूत्रनो उच्चार करे, एमज वली बीजं वांदणुं पूर्वली रीतेंज करे, पण एटलुं विशेष जे बीजे वांदणें “आवसियाए” ए पद न कहे, एटले अवग्रहथी बाहेर नीकलq नही, स्थानकेंज उनो रही “पमिकमामि खमासमणाणं” इत्यादिक सूत्रनो उच्चार करे. ए वांदणां देतां मनोगुप्ति एटले मनमांहे एक ध्यानपणुं करवू. वचनगुप्ति एटले वे वांदणांनी वचमां बीजुं कांही बोलवू नहीं, कायगुप्ति एटले शरीर आघु पाडं हलावq नही. एत्रण गुप्तिरूप त्रण आवश्यक जाणवां. तथा “खमणिडोनेकिलामो" इत्यादिक कहेतां जे, मस्तकें बे हाथ चमावीयें बैयें, तेने यथायात आवश्यक कहियें. जे नणी जन्मसमयें जेम बालक बे हाथ मस्तकें चमावीनेज जन्मे बे, तेम ए पण बे, ते जणी यथाजात एवं नाम जाणवू. हवे ए पच्चीश आवश्यकनो शरवालो मेलवे . बेहु वांदणे यश्बे वार नीचुं नमवारूप बे, बेहु वांदणांना बार आवर्त, गुरुचरणे चार वखत Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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