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नमोऽर्दत् तथा संसारदावानी स्तुति अर्थसदित. ए! संजाल चिंताना करनार सान्निध्यकारी एवा जे गोमुख यद, अने चके श्वरी प्रमुख, (संतिगराणं के०) सर्वसंघने शांतिना करनार, कुञोपवने उपशमना करनार, (सम्मदिहिसमाहिगराणं के०) सम्यकदृष्टि जीवोने स माधि एटले चित्तनी एकाग्रताना करनार, एवा देवो आश्रयीने ॥१॥ (करे मि काउस्सग्गं के०) हुं कायोत्सर्ग करूं बु. अहीं वंदणवत्तिाए इत्यादिक पाठ न कहिये, जे नणी ते यदादिक देवो अविरति पणे बे, माटें वांदवा पूजवा योग्य नथी तेथी 'अन्नब उससीएणं' इत्या दिकज कहियें. अहींयां देवतानो काउस्सग्ग करतां मिथ्यात्व लागे , ए रीतें केटलाएक कहे , ते जूतुं कहे , केम के? श्रीहरिजमसूरिकृत ललितविस्तरानी वृत्ति तथा श्रीहेमाचार्यकृत योगशास्त्रवृत्ति तथा आवश्यकचूर्णी मध्ये देवतानो काउ स्सग्ग करवो प्रगटज कह्यो बे, तथा श्रीवयरस्वामीयें गोष्ठामा हिल्स निन्ह वने अर्थे तथा सुनना श्राविकायें चंपानगरीनी पोल उघामवाने अवसरें तथा मनोरमा श्राविकायें,सुदर्शन श्रेष्ठीने शूलिनुं संकट पडे थके देवताना कास्सग्ग कीधा जे. एम घणे स्थलें सांनलिये बैयें, माटें सम्यकूदृष्टि जीवोने देवतानो काउस्सग्ग करवाथकी कांई पण दूषण नश्री. आ सूत्रमध्ये अ ढार लघु, अने चार गुरु, मली बावीश अदरो ॥१॥ इति ॥२१॥
॥ अथ परमेष्ठिनमस्कार ॥ नमोऽर्हत्सिदाचार्योपाध्यायसर्वसाधुन्यः॥१॥इति ॥२२॥
अर्थः-अरिहंत, सिझ, आचार्य, उपाध्याय, सर्व साधु, ए पांच परमे ष्टिने महारो नमस्कार हो. ए सूत्र चौद पूर्व माहेढुं एवो प्रघोष ने. तेजणी स्त्री जणवा न पामे ॥ १॥ इति ॥ २२ ॥
॥ अथ संसारदावानी स्तुति ॥
॥अवज्राचंद ॥ संसारदावानलदादनीरं, संमोहधूलीहरणे समीरम् ॥ माया रसादारणसारसीरं, नमामि वीरं गिरिसारधीरम् ॥१॥
अर्थः-( वीरं के०) श्रीवीर नगवान् प्रत्ये (नमामि के०) हुं नमस्कार करुं बुं. ते श्रीवीर केहवा ? तो के ( संसार के०) चातुर्गतिकने विषे
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