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________________ 0 प्रतिक्रमण सूत्र. बीजी गाथा श्रीअष्टापद प्रमुख तीर्थने नमस्कार करवा नणी कहे . चत्तारि अह दस दो, अवंदिया जिणवरा चनबीसं ॥ परमहनिहिअहा, सिहा सिई मम दिसंतु ॥५॥३०॥ अर्थः-अष्टापद पर्वत उपर नरत चक्रवर्तीये करावेलो एवो जे चतुर्मुख प्रासाद तेने विषे जेनां प्रतिबिंब विराज्यां , त्यां दक्षिण दिशिने विषे संनवादिक (चत्तारि के०) चार अने पश्चिम दिशिने विषे सुपार्श्वजिनादिक (अठ के० ) आठ तथा उत्तरदिशिने विषे धर्मजिनादिक (दस के०) दश तथा पूर्वदिशिने विषे झपनजिनादिक (दोश्र के०) बे, ए सर्व एका मेल वीयें, तेवारें ( जिणवरा चनवीसं के) चोवीश तीर्थंकरो वर्तमान चोवी शीना थाय. ते केहवा ?तो के (वंदिया के०) वंदित , एटले जेने इंसादिक वांदे . माटें वंदित , वली (पस्म के०) परमार्थे करी, पण कल्पनामात्रे नही, एटले सत्यार्थ पणे करी जे (निहिअहा के ) निष्ठितार्थ थया ने, एटले ( निष्ठित के ) स्थिर अचल कस्युं ( अर्थ के० ) सर्व प्रयोजन जेणे अर्थात् जे कृतकृत्य थया ने तथा ( सिझा के०) सिद्ध थया , एटले पूर्णफलने पाम्या बे, एवा झपनादिक चोवीशे जिनवर ते ( मम के) मुझने (सिकिं के०) सिद्धि एटले मोद, ते प्रत्ये (दिसंतु के०) द्यो आपो॥५॥ए गाथामां लघु उंगणत्रीश, गुरु आउ, मली सामंत्रीश अदरो बे. ए गाथा जे प्रकारें श्रीगौतम स्वामीयें अष्टापद पर्वतनी उपर जश्ने देवनी वंदना करता करतां करी बे, ते प्रकारेंज निबंधन थयेली बे. ए सिकस्त वमां बधी मलीने पांच गाथा बे, वीश पद , वीश संपदा बे, लघु एकशो ने एकावन अने गुरु पच्चीश, मली एकशो ने बहोतेर अदरो २ ॥२०॥ हवे सवब नचियकरण एम परमेश्वरें कडं बे.तेमाटें उचित करवा नणी श्रीवीतरागना वैयावच्चगर एवा जे सम्यग्दृष्टि देवता, तेना प्रत्ययने अर्थे कानस्सग्ग करवा सारु आवी रीतें कहे, ते कहे जे ॥ ॥अथ वेश्रावच्चगराणं ॥ वेआवञ्चगराणं, संतिगराणं, सम्मद्दिहिसमादिगराणं ॥१॥इति ॥२१॥ करेमि कानस्सग्गं अन्न ॥ अर्थः-श्रीजिनशासन- ( वेश्रावच्चगराणं के० ) वैयावच्च एटले सार Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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