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________________ सिक्षाणं बुझाणं अर्थसहित. करे ले के एवा तो झपनादि चोविशे तीर्थंकरो ग्रहण थाशे, तो त्यां कहे . के (वकमाणस्स के )श्री वर्धमान स्वामी लेवा. तेने जावें करीने(श्कोवि न मुकारो के०) एक वार पण नमस्कार कस्यो होय,एटले घणा नमस्कार तो अलगा रह्या, तथापि एकवार पण नमस्कार करवाथी पण पुःखें पार पमा य, एवो जे ( संसारसागरा के ) संसारसमुड ते थकी (तारे के)तारे बे,एटले मोक्षपदवी आपे बे. ते कोने तारे जे ? तो के ( नरं के०)नर प्रत्ये अने ( व के० ) वली ( नारी के०) नारीप्रत्ये (वा के०) अथवा कृत्रिम नपुंसक प्रत्ये तारे जे. अहीं कोइएक दिगंबरमतानुसारी स्त्रीने मोद नथी, एम कहे . ते जू कहे , केम के, मोदनुं कारण जेज्ञान,दर्शन,अने चारित्ररूप रत्नत्रयी ने तेनुं आराधन कर, तो पुरुष तथा स्त्री बेहुने विषे समान बे, ते तो प्रत्यक्ष दीगमां आवे ,मादे स्त्रीने मोद जवामां कां पण प्रतिबंध नथी॥आ गाथामां लघु एकत्रीश अने गुरु पांच,सर्व मली बत्रीशअदरो॥३॥एत्रण गाथा श्रीगणधरजीनी करेली नेते मात्रै नियमपूर्वक कहेवी. हवे आगली आवश्यकचूर्णीमांहेलि बे गाथा, गुरुपरंपरागत बे, ते पण कहेवी. तेमां पहेली गाथायें श्रीगिरनारपर्वतमुखमंमन सकल विघ्न समूह विहंगन, एवा श्रीनेमिनाथ नगवान् , तेमनी स्तुति कहे बे. जर्जित सेलसिहरे, दिरका नाणं निसीहिआ जस्स॥ तं धम्मचकवहि, अरिहनमि नमसामि ॥४॥ अर्थः-(उजिंतसेलसिहरे के०) उकिंत शैलशिखरनी उपर एटले गिरनार पर्वतना शिखरनी उपर सहस्राम्रवन माहे जेनां त्रण कल्याणक थयां बे, ते कहे . एक (दिरका के०) दीदाकट्याणक, अने बीजुं ( नाणं के०) झानकल्याणक, त्रीजु ( निसीहिया के ) सकलव्यापार निषधवा नणी निषेधिका एटले मोदकट्याणक, ए त्रण कल्याणक, ( जस्स के० ) जे स्वामीनां थयां बे. वली (धम्मचकवहिं के ) मिथ्यात्वादिक नाव शत्रुनो उन्नेद करवाथकी धर्मचक्रवर्तीसमान, ( तं के ) ते (अरिहनेमि के) श्री अरिष्टनेमि नगवानने ( नर्मसामि के० ) हुं नमस्कार करुं बुं॥ आ गाथामां लघु सत्तावीश अने गुरु सात,मली चोत्रीश अदरो बे॥४॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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