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________________ एश प्रतिक्रमणसूत्र. संसरवु एटले जमवं तेने संसार कहिये. ते संसाररूप (दावानल के) वननो अग्नि तेनो (दाह के०) ताप, ते तापने लववाने (नीरं के०) पाणी समान बे. वली केहवा जे ? तो के (संमोहधूली के०) मोह एटले अज्ञान तप धूली एटले रज तेने (हरणे के०) हरण करवाने (समीरं के०) पवन समान बे. तथा ( मायारसा के० ) कपटरूप जे रसा एटले पृथ्वी तेने ( दारण के )विदारवाने उखेमवाने ( सार के० ) प्रधान अत्यंत तीदण एवा (सीरं के०) हल समान बे. वली केहवा ? तो के ( गिरिसार के०) मेरुनी पेरें (धीरं के) जे धीर बे, अचल , एटले पोताना खरू पने विषे अचल बे, एवा वीर नगवान् बे. या श्लोकमां सर्व अदार चुम्मालीश , तेमां नारे अदर कोश् पण नथी. ॥१॥ ॥ वसंततिलका बंद ॥ ॥नावावनामसुरदानवमानवेन, चूलाविलोलकमलावलिमालितानि ॥ संपूरितानिनतलोकसमी हितानि, कामं नमामि जिनराजपदानि तानि॥२॥ अर्थः-( तानि के ) ते प्रसिद्ध ( जिनराजपदानि के० ) जिनराजनां चरण, ते प्रत्ये (कामं के ) यथेटपणे ( नमामि के०) हुं नमुं बुं. नम स्कार करुं बुं, ते श्रीजिनराजनां चरण केहवां वे ? तो के ( ना के०) जावें करीने (अवनाम के०) नम्या एवा जे (सुरदानवमानव के ) सुर ते वैमानिक अने ज्योतिषिक देवता, तथा दानव ते पातालवासी नवन पति तथा व्यंतर देवता अने मानव ते मनुष्य, तेना जे (श्न के०) स्वामी गकुर तेना (चूला के०) मस्तकने विषे जे मुकुट तेनी उपर रहेली एवी जे ( विलोल के) देदीप्यमान (कमलावति के) कमलनी श्रेणियो तेणे, (मालितानि के) पूजित कस्यां बे, एटले पूज्यां बे. वली ते श्रीजि नराजनां चरण केहवां ? तो के (संपूरित के०) सम्यक् प्रकारें पूख्यां ने (अनिनतलोक के ) त्रिकरणशुक्रियें करी नमनार एवा जे जक्तलोको नव्य जीवो तेनां ( समीहितानि के०) मनोवांडित जेणे एवां .आ श्लोकमां अक्षर बप्पन बे, नारे अदर कोइ पण नयी ॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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