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पुस्करवरदीवडे अर्थसदित.
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ho) अनुप्रेक्षायें करी एटले श्रीजिनेश्वरना गुणने वांरवार चिंतवतो को करूं, श्री जिनगुणार्थ विचारतो थको करूं, पण विकल पणे नहीं करूं, ( माणीए के० ) वर्द्धमानया एटले वृद्धिने पामती एवी श्रद्धा, मेधाधृति, धारणा अनुप्रेक्षा, ए पांचे बोल तेणें करी सहित थको (काउस्सग्गं के० ) कायोत्सर्ग प्रत्यें ( गमि के० ) हुं करुं हुं ॥ ३ ॥ एमां समाए इत्यादिकमां श्रद्धादिक पांच बोल वृद्धिवंता थवाना हेतु कह्या, माटें ए सात बोलनी त्रीजी हेतुसंपदा जाणवी. एम पद सात, लघु चोवीश ने गुरु पांच, मली गणत्रीश अरो बे. अहीं सुधी बद्धां मली पन्नर पद थयां, त्रण संपदा थइ, तथा त्रहोंतेर लघु ने शोल गुरु, मली नेव्याशी अक्षरो थया. तथा एने बेडे अन्नवस सिएणं इत्यादिक काउस्सग्ग
क संपूर्ण कहियें. तेनो अर्थ, प्रथम लखाई गयो बे, ए बेदु मलीने याव संपदा, तालीशपद, लघु अक्षर बशो, गुरु उगणत्रीश, सर्व मली बने गणत्रीश अरो वे ॥ इति ॥ १८ ॥
वे जेणें करी सकल पदार्थ जाणियें एवो प्रदीप समान जे श्री सिद्धांत तेने, संस्तववो जोश्यें, तेमध्यें पहेली गाथायें तेना प्ररूपक श्रीतीर्थंकर देवने स्तवे बे. अथ पुरकरवरदीव लिख्यते ॥
॥ पुरकरवर दीवडे, धायइसंडे जंबुदीवे ॥ नरदेवयविदेदे, धम्मा गरे नम॑सामि ॥ १ ॥
अर्थः- ( पुरकरवरदीवडे के० ) पुष्करवर नामा त्रीजो द्वीप तेनो थ एटले पुष्करवरही पाने विषे वे वे, तथा ( था के० ) वली ( धायइसंडे ho) धात किखं नामा बीजो द्वीप ए द्वीपमां धातुमी वृना खंग एटले वन ते घणां वे माटें द्वीपनुं पण तेहीज नाम जावं, ते विषेपण बे बे, तथा (जंबुदी वे के० ) जंबुद्धीपने विषे एक, एक, ए रीतें अढी द्वीप संबंधी (जरह के ० ) पांच जरत क्षेत्र बे, तेने विषे, वली (एरवय के० ) पांच ऐरवत क्षेत्र बे, तेने विषे, वलि (विदेहे के० ) पांच महाविदेह क्षेत्र बे, तेने विषे, ( धम्मा गरे के० ) धर्म्मनी यादिना करनार एवा जे श्री सीमंधरस्वामी प्रमुख विहरमान जगवंत बे ते सर्व प्रत्यें ( नम॑सा
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