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________________ ច។ प्रतिक्रमण सूत्र. मि के ) हुँ नमस्कार करुं ९ ॥१॥ ए गाथामां लघु चोत्रीश, गुरु त्रण, सर्वादर सामंत्रीश ॥ए विहरमान जिनने वांदीने हवे सिद्धांतने स्तवेळे. ॥तमतिमिरपालवि, सणस्स सुरगणनरिंदमदि स्स॥सीमाधरस्स वंदे, पप्फोडिअ मोहजालस्स ॥२॥ अर्थः-(सीमाधरस्स के०) सीमा एटले जीवने धर्मनी मर्यादाने विषे धरी राखे, पण कुमार्गे वर्तवा न आपे,एवो जे सिद्धांत, ते प्रत्ये(वंदे के०) ढुं वांडु बुं, ते सिद्धांतरूप श्रुतज्ञान केहबुं बे ? तो के ( तम के० )अज्ञानरूप जे (तिमिर के) अंधकार, तेना (पमल के०) समूह, तेप्रत्ये ( विसणस्स के) विध्वंस एटले विनाशनो करनार जे. अर्थात् अज्ञान रूप अंधकारना समूहप्रत्ये नाशनो करनार , अथवा (तम के०) बफ स्पष्ट अने निहत कर्मनां पडल जे समूह अने (तिमिर के) निकाचित कर्मनां (पमल के०) समूह ते प्रत्ये विनाशनो करनार . वली ते सिद्धांत केहवो जे ? तो के ( सुरगण के०) देवसमूहना तथा (नर के०)मनुष्यना जे (इंद के०) इंडो तेणें ( महिअस्स के०) अर्यो बे, पूज्यो ,वली ते सिकांत केहवो बे?तो के (पप्फोमिश्र के०) प्रस्फोटित एटले अत्यंतपणे करीने त्रोमी डे अर्थात् फोमी नांखी ( मोहजालस्स के०) अविवेकि जनोनी अज्ञानरूप मोहजाल एटले मिथ्यात्वजाल जेणे एवो बे, अहीं श्रुतज्ञा नने सीमाधर कह्यो बे,तेनुं कारण ए ने, के सीमा एटले मर्यादा तेमर्यादाने विषे सर्व पदार्थप्रत्ये धरी राख्या स्थापी राख्या ने,माटेंएवा सिद्धांतने हुँ वांउं.ए गाथामां लघु चोत्रीश, गुरु ब, सर्वमली चालीश अदरोडे ॥॥ हवे वली पण ए श्रीसिकांतना गुणोपदर्शनपूर्वक सिझांतमां प्रमाद न करवो, एवो विषय देखाडे ॥ ॥ वसंततिलकाबंद ॥ ॥जाई जरामरणसोगपणासणस्स, कल्लाणपुरकल विसालसुदावहस्स ॥को देवदाणवनरिंदगणचित्र स्स, धम्मस्स सारमुवलग्न करे पमायं ॥३॥ अर्थः-(धम्मस्स के०) धर्मस्य एटले श्रुतधर्म जे श्रीसिद्धांत तेनो (सारं के०) सामर्थ्य एटले श्रुतझान जणवानी शक्ति अथवा श्रुतझाननो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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