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यह सामने खड़ी मृत्यु भी :
केवल महावीर
कोशल देश के राजनगर श्रावस्ती की हवाओं का रुख एकाएक बदल गया है। बहुत दूर से आता देव-दुंदुभियों का घोष सुनाई पड़ा है। और नगर के प्रमुख चौक में आघोषणा हुई है कि :
'ज्ञातृपुत्र तीर्थंकर महावीर किसी भी क्षण श्रावस्ती में हो सकते हैं! ' ___सुन कर, कोशलेन्द्र प्रसेनजित के होश फाख्ता हो गये। उसकी नींद हराम हो गई। उसका शरीर आँधी में थर्राते पेड़ की तरह झकझोले खा रहा है। खड़े रहना दुश्वार हो गया है। वह अपने एकान्तों में भागा फिरता है। कि कहीं किसी को उसकी इस कायरता का पता न चल जाये। यह कौन है, जिसने उसका सिंहासन हिला दिया है, उसका बाहुबल छीन लिया है ? वह दुर्मत्त हो कर अपनी भुजाएँ ठपकारता है, पर वहाँ से किसी वीरत्व का प्रतिसाद नहीं लौटता। पक्षाघात पक्षाघात पक्षाघात ?
वह भाग कर अपनी आयुधशाला में जाता है। अपने शस्त्रास्त्रों के विपुल संचय को देख कर, उससे बल पाना चाहता है। लेकिन यह कैसा विपर्यय है, कि उसके सारे शस्त्र उसी के विरुद्ध तने हैं। वे झनझना कर उसी पर टूट पड़ते हैं । और उसी क्षण उसे अनुभव होता है, कि बिम्बिसार, अजातशत्रु, वत्सराज उदयन, चण्डप्रद्योत, पारस्य का शासानुशास-सबने मिल कर उस पर एक साथ आक्रमण कर दिया है।
वह बिलबिला कर अपने राज-कक्ष में पहुँचता है। तो देखता है, कि उसकी दीवारों पर जो उसके साम्राज्य-स्वप्न के मान-चित्र लटके हैं, उन सब पर किसी ने चौकड़ी मार दी है। वे नक्शे आपोआप फट जाते हैं। किसी ने उनकी चिन्दियाँ उड़ा कर, उसके आगे ढेर लगा दिया है। उसके द्वारा आखेटित जो व्याघ्र, तेन्दुए, रीछ, मगर, हरिण और बारासिंगे के ताबूत वहाँ सजा कर रखे हैं, वे सब जीवन्त हो कर एक साथ उसे खाने को दौड़ते हैं।
वह भाग कर, अपने महल की सब से ऊँची छत पर जाता है। और अपने विस्तृत राज्य और वैभव का विहंगावलोकन करता है। जम्बू द्वीप का केन्द्रीय व्यापारिक पाटनगर श्रावस्ती, दिशाओं को छा कर फैला पड़ा है। उसके
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