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आया। आद्या प्रकृति ? सागौन, सप्तच्छद, सल्लकी, सुरपुन्नाग, सिन्धुवार, अंजन और चन्दन के सुरम्य वन । अभेद्य है इस अरण्य का परिच्छद । एकाएक इसकी अनादि निस्तब्धता में झिल्ली की झंकार, कीट-पतिंगों का स्पन्दन और अश्रुतप्राय गुंजन । रेंगने, सरसराने, रिलमिलाने के कम्पनों से मेरे सारे जंगलशरीर में काँटे उठ आये। मणियों की विविध रंगी द्युतियों से आलोकित विवर, बाँबियाँ, भूगर्भ । सरिसृपों से आक्रान्त मेरी देह के रोम-काँटों की कसकन । फिर मुदित-मगन पुलकन । उसमें से प्रवाहित झरने, नदियाँ, सरोवर, समुद्रों के स्फीताकार मण्डल-दिगन्तों पार दृष्टि से ओझल हो रहे । ......
अरण्य की शाखाओं में गाती नीली-पीली-हरी चिड़ियाओं का गान । जंगल के पारान्तर से उठे आ रहे उत्तुंग पर्वत, मेरी चेतना के गहन जल में झाँक रहे । सब कुछ कितना सुरम्य, शान्त, सुन्दर, आदि संगीत से गुंजायमान । जल, वनस्पति, फल-फूल की विचित्र गन्धों का अबाध सौरभ-राज्य । औषधियों की कान्ति से भास्वर वन के अगम्य, नीरव एकान्त ।
सहसा ही एक हड़कम्पी भैरव नाद। पर्वतों में से गुफाएं फट पड़ीं। ठीक मेरी देह के आभोग में विस्फारित हुईं वे कन्दराएँ। मेरे नितम्बों और जंघाओं में चिंघाड़ता एक महा व्याघ्र। मेरी कटि पर झूमता एक गजेन्द्र। क्षण मात्र में ही मेरे उपस्थ को भेद कर, एक विकराल अष्टापद, मेरी कमर को गंधते गजराज पर टूट पड़ा। उसे हाथी ने अपनी संड में दबोच कर मेरे चट्टानों-से स्तनों पर पछाड़ना चाहा । व्याघ्र छूट निकला, और उसने मेरी छाती पर गजराज को ढाल कर उसके उदर को फाड़ दिया, और उसके भीतर प्रवेश कर उसकी पसलियों में घुसता ही चला गया। मैं निरी चट्टान हो रही, रक्त-स्नात आदिम चट्टान ।
एकाएक वह चट्टान एक दारुण कोमल टीस के साथ विदीर्ण हो गई। उसमें से अनावरित हो आये, सुवर्ण के सुगन्धित कलशों जैसे मेरे स्तन । उन पर नाच उठा एक मयूर। मयूर में से फूट कर एक भुजंग नाग फूत्कार उठा। नाग की गुंजल्क में मयूर, और मयूर के सुन्दर नील पंखों को डसता नागफण। कि तभी मेरे कुन्तल-वन में से उड़ आया एक गरुड़। वह विपल मात्र में नाग को निगल गया।...मेरी देह में परस्पर संघर्ष-संहार कर रहे हिंस्र पशुओं का पूरा जंगल, उस गरुड़ के पंखों में अवसान पा गया।
मगर कहाँ अन्त है इस हिंसा का? सारे आकाश को व्याप्त कर उड़ते गरुड़ की पाँखों तले, सुन्दर समुद्र और नदियों के जल-नील आवरण में, फिर वही जीव का भक्षण करता जीव । मछलियों को चबाते मत्स्य, मत्स्यों को निगलते अजगर, अजगरों को लीलते मकर, मकरों को डसते पाताल के महानाग ।
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