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से चाँप कर, तुमने ब्रह्माण्डों के गर्भ उलट दिये हैं। अन्तरिक्षों की अनाहत शान्ति को विक्षुब्ध कर दिया है।
तुम्हारे दबाव तले चूर-चूर हई जा रही हैं। और मेरी कटि पर आरोहण कर, तुम किसी ऊर्ध्वान्त को अपने त्रिशूल से भेद रहे हो। और मेरा छिन्नभिन्न नाड़ी-मण्डल संकोचित हो कर, तुम्हारे बाहुमूल में संगोपित हो गया है। असह्य हैं तुम्हारे ये अन्तरिक्ष-भेदी आघात। मृणाल तन्तु-सी तन्वंगी यह कुण्डलिनी, इन्हें कैसे सहे । आनन्द-वेदना से मातुल हो कर, वह उत्सर्पिणी उत्तान हो लहरा उठी है।
और एकाएक यह क्या हुआ, कि मैं तुम्हारे भ्रूभंग की अग्नि में कूद पड़ी। और देखा कि वहाँ, एक दो दलों वाला कमल फूट आया है। सुनाई पड़ा : 'यह आज्ञाचक्र का प्रदेश है !' इन दो दलों पर कर्बुर वर्ण के-हं और क्षं-अक्षर अंकित हैं। फलावरण में विराजित है इस चक्र की अधिष्ठात्री शक्ति हाकिनी। श्वेतांगी, षट्मुखी, त्रिनयना, षट्भुजा, श्वेत कमलासीन । वह अभयमुद्रा, वरमुद्रा, रुद्राक्ष माला, नर-कपाल, डमरू और पुस्तक धारण किये है। उसके ऊपर के त्रिकोण में काल का अतिक्रमण करते इतर शिव विश्वनाथ, योनि से उद्भिन्न लिंग-स्वरूप में विराजित हैं। मेरे ही उरु-मण्डल से उत्थायमान तुम, मेरे स्वामी ! ___ वे सर्वगामी पुरुष अनायास मेरे शरीर में प्रविष्ट हो गये। मेरे गोपनतम भवनों और अन्तःपुरों में घुस कर वे खेलने लगे। मेरे रक्त-कोषों में वे सर्प-राशियों की तरह संसरित, अभिसरित होने लगे। मेरे आसपास के वातमण्डल में चिनगारियों जैसे ज्योति के बिन्दु तैर रहे हैं। उनके बीचोबीच कोटि सूर्यों को समाहित किये, एक निवात निष्कम्प जोत जल रही है। और मैं उसके आलोक में, मूलाधार से ब्रह्म-रन्ध्र तक के बीच चल रही जाने कितनी रहसिल अदृश्य क्रियाओं और रंग-सृष्टियों को प्रत्यक्ष देख रही हूँ।
..'ओ मेरे योगीश्वर, हठात् तुम मेरी पहोंच से बाहर हो गये। मुझ से निष्क्रान्त हो गये। अपनी निरालम्बपुरी में छलाँग मार कर, अपने अधरासीन भवन के कपाट तुमने मुद्रित कर लिये। मैं तुम्हारी मनोजिनी नारी हूँ, तुम्हारी एकमेव मानसी। लेकिन यह क्या हुआ, कि तुम एकाएक मुझ से और मेरे इस प्रिय जगत से, मनस् और भाव के सारे सम्बन्ध विच्छिन्न कर गये ! तुमने मुझ से मेरा मन छीन लिया, तो उससे आविर्भूत सारा जगत् भी अदृश्य हो गया। लेकिन मैं दृष्टि मात्र रह कर, तुम्हारे सुन्न महल में जोत-सी चक्कर काट रही हूँ। देख रही हूँ तुम्हें, तुम अनन्त में आसीन आकाशमांशी
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