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मेरे हर आरोहण के साथ, मेरे वक्ष की पहोंच और छुवन से बाहर होता गया। मैं हारी, हताहत ताकती रह गई। ____ अकस्मात् एक ब्रह्माण्डीय विस्फोट हुआ। तमाम चराचर थर्रा उठा।
और मैंने देखा, उस आकाशी महामस्तक के दोनों कानों के आरपार एक प्रकाण्ड शलाका भोंक दी गई है। एक मानुषी वेदना की चीत्कार, अनहद नाद हो कर जीव मात्र के प्राण को बींध गई। ऊर्ध्व में से ढलक कर, वह वेधित महामस्तक मेरे वक्षोजों पर आ ठहरा । मैंने उसे अपनी बाँहों में समेट कर, उसके रक्त-भीगे चेहरे को प्यार करना चाहा। तो उसके कर्णों में बिंधी वह शलाका, मेरी छाती को छेद कर, सन्नाती हुई निकल गई। उस शलाकावेध में, मैं तुम्हारे साथ क्षण भर को गुंथ गई। एकीकृत हो गई। तुम्हारी शलाका से आरपार बिंधे बिना, तुम्हारे साथ आश्लेषित नहीं हुआ जा सकता, ओ मेरे शलाका-पुरुष!
सुरम्य सुमेरु-शिखर-सा तुम्हारा वह आकाशगामी मस्तक, ऊर्ध्व के जाने किस चन्द्रवलय में अन्तर्धान हो गया। और और तुम्हारी शलाका मेरी देह के अतल-वितल, तलातल को गहरे से गहरे भेदती चली जा रही है। यह वेदना मृत्यु से आगे की है। यह वेदना तुम्हारे केवलज्ञान से भी परे की है। यह एक विशुद्ध सम्वेदन की अथाह प्रसव-वेदना है। मेरी इस रजस्वला पीर में, अनन्त कोटि ब्रह्माण्ड एक नया जन्म लेने को कसक रहे हैं।
"हठात् पृथ्वी का सबसे भीतरी कुम्भ विस्फोटित हो उठा। ओह, मेरे अतल में से यह कैसी सर्पिणी लहरा उठी है। सारी सृष्टि लुप्त हो कर, लहरों और प्रकम्पनों के सीमाहीन विद्युत्-प्रसार में बदल गयी है। निरस्तित्व हो जाने की अनी पर हूँ। सचराचरा धरा जलौघ में मग्न हो गई है। और मैं उसके बीच, एक वराह के एकाकी दाँत पर खड़ी अपने को देख रही हूँ। और देखते-देखते मैं कच्छप की तरह अपने भीतर सिमट गई। अपने पृथुल नितम्बों की सन्धिगुहा में संकोचित हो गई। और औचक ही मैंने, अपने मूलाधार से ब्रह्मरन्ध्र तक फैले मेरुदण्ड के, विभिन्न मणि-प्रभाओं से भरे पोलान को आर-पार देखा। सारी सृष्टि अपने मूल रूप में अपने भीतर देखी, और अनुभूत की।
"हठात् अपने को अपने मूलाधार पर खड़े पाया । उसके किसी अदृष्ट उत्स से प्रस्फुटित हो कर, बहत्तर हज़ार नाड़ियाँ ऊर्णनाभ के जाल की तरह मेरी सारी देह में छा गयी हैं। और उनके बीच से उठ रही हैं, तीन प्रमुख नाड़ियाँ। चन्द्रमा-सी चमकती पाण्डुर वर्णी चित्रिणी। सूर्यरूपा वज्रिणी, अनार-फूल की पाँखुरियों जैसी प्रभा वाली। उनके बीच रक्तवर्णी सुषुम्ना, सिन्दूरी लपटसी लहराती हुई। वासनाकुल नारी-सी कम्पनवती। चन्द्र, सूर्य, अग्नि की
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