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रहती थी । कल्प - भोजनों के सामने पड़े सुवर्ण थाल अछूते पड़े रहते । वे स्वयम् ही क्षुधा बन कर मेरा आहरण कर लेते, मेरे रक्त-धातु में आत्मसात् हो जाते । क्षीरोद सरोवर के शीतल गन्ध-जल, फल-वनों के फलों से सीधी नितारी गई सुगन्धित मधु मदिराएँ, स्वयम् ही प्यासी हो कर मुझे अपने में डूबो लेतीं । भोक्ता, भोग्य और भोग का अन्तर ही समाप्त हो गया था ।
महीनों में कभी बड़ी विप्लवी भूख-प्यास लग आती । तो सारा वातावरण अपूर्व पक्वान्नों की केशर - मेवा सुगन्धों से भर उठता। आज तक अनास्वादित वारुणियों का खुमार, मेरे अंग-अंग को उन्मत्त कर देता । तब एक बच्चे की तरह इतना सारा भोजन-पान कर लेती, कि सेविकाएँ देख कर चकित हो जातीं । उनके लिये वह बड़े हर्ष का दिन होता था, कि उनकी स्वामिनी ने आज जी भर खाया-पिया है । तभी उदन्त सुनाई पड़ता था, कि महीनों निर्जल निराहार रहने के बाद तुमने अमुक के द्वार पर, एक अंजुलि पयस् का पाणिपात्र आहार ग्रहण किया है ।
हर ऋतु की दुरन्त नई हवा जब चलती, तो मेरे प्राण चंचल हो उठते । अपने रथ का स्वयम् ही सारथ्य करती हुई, निर्लक्ष्य यात्रा पर निकल पड़ती । ग्रीष्म की लू भरी दाहक हवाएँ जब सारी प्रकृति को झुलसा देतीं, तो किसी अंगारों-से दहकते पर्वत की सबसे ऊँची चोटी पर जा लेटती । उसके प्रतप्त पाषाणों में छाती बींध कर, मैं जाने किस वज्रांग पुरुष को गला देना चाहती । आंधी वर्षा की उद्दण्ड तूफ़ानी रातों में, हहराते भयावह अरण्यों को अपनी बाँहों में भींच-भींच लेती। हिम-पाले की शिशिर रात्रियों में, बर्फ की शिला पर सो कर ही कुछ चैन पाती थी । और वसन्त की मलय हवाओं से मदनाकुल हो कर, कुँवारी प्रकृति के जाने किन अनप्रवेशित फूल - वनों में चली जाती । सारे वसन-आभरण मेरे लास्य के उन्माद में उतर पड़ते। मेरे सारे अङ्गाङ्ग नाना रंगी फूल-पल्लवों से शृंगारित हो जाते । वनकदली के पेशल कुंज में जाने कौन मुझे खींच ले जाता । एक अदृश्य, अस्पृश्य मार्दव की अगाधता में, जाने कौन मिथुन के लि-क्रीड़ा में आत्मसात् हो जाता। और सारे वन में, फूलों से झरते केसर - पराग के मदभीने बादल छा जाते ।
-- और ऐसी ही वसन्त ऋतु की एक मलयानिल से पुलकित रात में, अचानक मेरे कक्ष में एक विकराल दैत्य छाया मँडलाती दिखायी पड़ी। हठात् रत्नदीप बुझ गये । कक्ष जाने कहाँ लुप्त हो गया। एक भयावह निर्जन अटवी में अकेली ला पटकी गयी । और सारा आकाश हज़ारों डाढ़ों से लपलपाता, हुंकारता, एक दुर्वार दानव हो कर मुझे चारों ओर से दबोचने लगा। उसने जाने कैसे नागपाशों में मुझे जकड़ लिया । और मुझे उठा कर एक उत्तुंग
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