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इतनी तीव्र और असीम हो गयी है, कि वह अपने में नहीं रह पाती है। सारी इन्द्रियों में परस्पर होड़ मची है, उसी एक मात्र काम्य और भोग्य के सारे विषयों को स्वयम् ही भोग लेने के लिये । श्रवण में नयन फूट पड़ते हैं, नयन में श्रवण उभर आते हैं। सारी त्वचा जाने किस रस के आस्वादन से रसनाभूत हो उठती है। घ्राण की गन्ध नाद बन कर गूंजने लगती है। मैं संगीत को देखने लगती हूँ, अस्पृश्य आकाश मुझ में मांसल और पेशल हो जाता है। मैं हवा में, सुगन्धों के रंगों और वीणा की सुरावलियों से चित्रसारी करती हूँ। मुझे जाने कैसे अनदेखे, अनसुने नीलमी जल-फूलों की गन्ध आने लगती है, जो कहीं हैं ही नहीं। ...
मैंने रेवा तट के जम्बू कुंजों को, पहले बादल की घनी जल-छाँव में गाते सुना है; और मेरा सारा बदन जामुनी श्यामलता के रस से जाने किसी के लिये उमड़ आया है। मैं अपने और तुम्हारे अवगाढ़ स्पर्श की नीललोहित रक्त गंध को अपने शरीर में से महकती पाकर, अतिचेतना के मोहन वनों में मूच्छित हो गई हूँ। एक ऐसा स्पर्श, जो त्वचा से कभी हुआ नहीं, होगा नहीं, उसकी रक्तगंध कैसी खट-मीठी और कसैली है। जैसे आम्र-मंजरियों की गन्ध, कच्ची अँबियों की गन्ध । और तब मेरे सूने झरोखे तले की अमराई में, नीरव सन्ध्या में कई बार कोयल ने टहुक कर मुझे टोका है। वह मेरी आवाज़ का दरद होकर रह गयी है। __इन आशाहीन वर्षों के सारे दिन-रातों में, सेज तो बेशक शूली पर रही। लेकिन मेरी इन्द्रियाँ ऐसी महीन, सूक्ष्म, परस्पर में आलोड़ित हो गईं, कि मेरा मन ही सारे विषयों का स्रष्टा और भोक्ता स्वयम् आप हो कर रह गया। इन्द्रियाँ तो बस, मानो दर्पण-वाहिनी चेरियाँ भर रह गईं। फुलैलों की रत्न-मंजूषा खुलते ही, जाने किन विदेशिनी फूल-घाटियों की मादन पराग सारे कमरे में झरने लगती है। ._ मैं अमराइयों की बेटी हैं, और मेरा सारा जीवन विपुल ऐश्वर्य और भोग-विलास के बीच बीता है। सुगन्धित मदिराओं के मणि-चित्रित प्यालों पर मेरी सन्ध्याएँ सदा फूलों में बिछलती रहीं, संगीत और लास्य के उद्दाम प्रवाहों पर बहती रही। पृथ्वी पर जो कुछ परम भोग्य है, वह सब मैंने भोगा है। मिस्र की नील नदी से आये ताज़ा फूलों से मेरी शैयाएँ सजी हैं। गन्ध-मूच्छित सॉं से आवेष्टित प्रकृत चन्दन के पर्यंकों पर मैं सोई हूँ। मैं ऐसे तकियों पर लेटी हूँ, जिन पर सर रखते ही, कानों में संगीत की अतिमहीन सुरावलियाँ गूंजने लगती हैं, और उन स्वरों के साथ विचित्र अनाघ्रात गन्धों की अनुभूति होती है। पृथ्वी, समुद्र और पर्वत-गर्भ के श्रेष्ठतम मांत्रिक रत्नों से मैंने सिंगार किया है। रत्नों की विचित्र नक्षत्री शक्तियों के बल,
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