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ही रहेंगे। सामने खड़ी मृत्यु भी तब महावीर के सिवाय और कुछ न रह जायेगी । जीवन और मृत्यु दोनों ही में भगवान समान रूप से उपस्थित हैं । यह परात्पर सत्य यहाँ अनायास प्रकाशित होता है।
___ढाई हजार वर्ष पूर्व का, ईसापूर्व की छठवीं शती का भारत ही नहीं, उस काल का समस्त विश्व एक युगान्तर की मौलिक प्रसव-पीड़ा से गुजर रहा था। सारी समकालीन पृथ्वी के ज्ञात देशों में समान रूप से एक तीव्र असन्तोष और अशान्ति व्याप रही थी। अब तक के स्थापित आदर्श और मूल्य निष्प्राण, निसःतत्व और खोखले साबित हो चुके थे । इतिहास के सदा के तर्क के अनुसार, मौजूदा वाद (थीसिस) का संतुलन भंग होकर वह निरर्थक साबित हो चुका था। आदर्श जीवन में प्रवाहित न रह कर, निरे निर्जीव बुत भर रह गये थे । फलतः सर्वत्र पाखण्ड का बोलबाला था। स्थापित स्वार्थ नग्न होकर खेल रहे थे, और उन्होंने जन-जीवन को दबोच कर उसका भयंकर शोषण आरम्भ कर दिया था।
तब ठीक प्रकृति और इतिहास के तर्क ने ही, ध्वस्तप्राय वाद के विरुद्ध एक प्रचण्ड प्रतिवादी शक्ति को जन्म दिया। एक सार्वभौमिक असन्तोष और बेचैनी ही इस प्रतिवादी शक्ति के अवतरण की प्राथमिक भूमिका थी। तमाम सड़े-गले जर्जर चिों को उखाड़ फेंकने के लिये नवोत्थान की स्वयम्भू शक्तियाँ जैसे एक सर्वनाशी विप्लव और प्रलय की तरह लोक में घूर्णिमान दिखायी पड़ी । यूनान, इस्रायेल, पारस्य, महाचीन और भारत में समान रूप से इन प्रतिवादी शक्तियों का विस्फूर्जन होने लगा।
आर्यावर्त में आनन्दवादी वेद और ब्रह्मवादी उपनिषद् के प्रवक्ता ब्राह्मण अपनी ब्राह्यी ज्ञानमर्यादा से विच्युल हो चुके थे। वणिक-प्रभुता के सर्वग्रासी प्राबल्य ने ब्राह्मण और क्षत्रिय दोनों ही को पथ-भ्रष्ट कर दिया था। अस्सी प्रतिशत प्रजा निरक्षर थी, और अज्ञानान्धकार में भटक' रही थी। ब्राह्मण वणिक और क्षत्रिय का क्रीतदास होकर दिशाहारा प्रजा को अधिकाधिक भटका और भरमा रहा था। वेद और उपनिषद् की जीवन्त ज्ञानधारा सूख चली थी; उसके सम्वाहक ब्राह्मण ऋचाओं और सूत्रों का उपयोग केवल अपनी ऐहिक लालसाओं की तृप्ति के लिये कर्म-काण्डों में कर रहे थे । " तभी सत्य के स्वयम्भू वैश्वानर जाग उठे। कुछ विरल सत्यनिष्ठ आत्माओं में उन्होंने असन्तोष और विप्लव का ज्वालागिरि जगाया। आगम और इतिहास में आलेखित है कि सत्य की अग्नि से प्रज्जवलित ये कुछ विद्रोही, प्रजाओं में घूम-घूम कर स्थापित धर्म और ब्राह्मणों तथा सवणियों के पाखण्डों का घटस्फोट करने लगे। उन्होंने धूर्त प्रवंचक कर्मकाण्डों के
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