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________________ ३१ आम्रपाली को केन्द्र में रख कर ही अब तक सारी बात चली है । तो उस बारे में उठने वाले एक तीखे तथ्यात्मक प्रश्न का उत्तर देकर ही इस प्रकरण को समाप्त करना उचित होगा । ... आगम और इतिहास दोनों ही स्रोतों में महावीर के साथ आम्रपाली के जुड़ाव का कोई उल्लेख उपलब्ध नहीं हैं । फिर क्या वजह है कि मैं आम्रपाली को महावीर के साथ जोड़े बिना रह न सका ? शुरू में यह बात मेरे लक्ष्य में क़तई कहीं नहीं थी, कि आम्रपाली को महावीर के साथ जुड़ना है, या जोड़ना है । यही कह सकता हूँ, कि कथा का प्रवाह स्वयम् ही मेरी क़लम को उस ओर ले गया । मानो कि मौलिक सत्ता में उपादान रूप से महावीर और आम्रपाली का जुड़ाव विद्यमान था, और मेरी क़लम की नोंक पर वह अनायास ही अनावरित या आविष्कृत हो गया । अनावरण अथवा आविष्कार ही सृजन की सर्वोपरि उपलब्धि होती है । जो वास्तव के सतही जगत् में या इतिहास में पहले ही से उपस्थित और आलेखित है, उसका पुनर्-सृजन कला नहीं, शिल्प या कारीगरी मात्र है । जो अस्तित्त्व में प्रत्यक्ष न होते हुए भी, सत्ता के अतल में छुपा पड़ा है, अथवा जो कहीं इन्द्रियगोचर है ही नहीं, उसका इन्द्रियगम्य अनावरण या आविष्कार ही मेरे मन कला का चरम प्राप्तव्य हो सकता है । इतिहास देशकाल से सीमित एक तथ्यात्मक सिलसिला मात्र होता है । अब तक गहराई के आयामों से उसका सरोकार नहीं रहा था । लेकिन एर्नाल्ड टॉयनबी और ओसवाल्ड स्पेंगलर जैसे कुछ इतिहास - दार्शनिकों ने इतिहास को पारदर्शी तत्व-दर्शन का विषय बनाया, और पश्चिम में तथ्यात्मक इतिहास का स्थान 'फ़िलासॉफ़ी ऑफ हिस्ट्री' ने ले लिया। यानी सच्चा इतिहास वह, जो कालक्रम में घटित मानवों और घटनाओं की अन्तश्चेतना का अन्वेषण करे। अप परिणति में जो तत्वज्ञान, मनोविज्ञान और आत्मज्ञान बने । प्रकट रूपाकारों के पीछे की चेतनागत स्फुरणाओं का जो अन्वेषण और मूर्तन करे । इसी स्थल पर इतिहास क्रिएटिव ( सृजनात्मक ) हो गया । कहें कि निरा इतिवृत्त न रह कर, वह कलात्मक सृजन बन गया । जो कहीं लक्षित नहीं था, उसका उद्घाटन, अनावरण और आविष्कार भी इतिहास का विषय बन गया । इतिहास की रिसर्च, मानव मन और आत्मा की 'रिसर्च' हो गयी । इतिहास में घटित मानवों और घटनाओं को उनकी तमाम गहराइयों में थाहा गया, छाना - बीना गया । तब इतिहास ऐन्द्रिक ज्ञान की सीमा का अतिक्रमण करके इन्द्रियेतर ज्ञान के राज्य में प्रवेश कर गया । वस्तुतः यह राज्य ही कलाकार का अन्वेषण - राज्य है । मानो कि कलाकार जाने-अनजाने ही प्रच्छन्न सर्वज्ञता की चेतना से उन्मेषित और अनुप्राणित होता है । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003848
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size6 MB
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