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मेरी अपनी छोटी हस्ती की सीमा में, मुझे भी ऐसी ही विवशता महसूस हुई है। यह वाक़ई मेरी अन्तिम लाचारी रही, कि अपने वक्त के दौरों और चलनों को आत्मसात् करके भी, मैं उन पर रुक न सका । उनसे बाधित और प्रतिबद्ध न हो सका । मेरे भीतर जन्मजात रूप से ऐसी माँगें, पुकारें और तक़ाज़े थे, जो नॉर्मल मानवीय मनोविज्ञान की सीमा में कहीं भी अँट नहीं पा रहे थे। मुझे अपने जीने, खड़े रहने, अस्तित्व धारण करने तक के लिये, अपनी धरती और अपना आकाश स्वयम् ही रचना पड़ा । हर अगला क़दम बढ़ाने के लिये मुझे अपना रास्ता खुद ही खोलना पड़ा । हर अगले पग-धारण के लिये मुझे अपनी चेतना में से ही एक नया ग्रहनक्षत्र ( प्लेनेट) रचना पड़ा। सारा ज़माना एक तरफ़, और मैं उससे ठीक उलटी तरफ़ चला। इसी कारण वर्तमान साहित्य में मेरी पहचान भी आसान न हो सकी । अनपहचाने, अवहेलित रह जाने का ख़तरा सदा मेरे सामने रहा। अनादि से आज तक के सारे धर्म-शास्त्र, योग- अध्यात्म, दर्शन-विज्ञान भी मानो मेरी निराली पुकार का उत्तर न दे पाये। इसी से मुझे क़दम क़दम पर नये मोड़ और नये रास्ते तोड़ने पड़े । -- ज़िन्दा रहने तक के लिये ।
यही कारण है कि मुझे अपनी रचनाओं की लम्बी भूमिकाएँ लिखने को विवश होना पड़ा। इसे मेरा अहंकार नहीं, मेरी लाचारी माना जाये । ऊपर जो चतुर्थ खण्ड के आरम्भिक अध्यायों में अनायास उद्घाटित मर्मों, तत्त्वों और प्रतीकों का विशद विवेचन मैंने किया है, उसका भी कारण यही है, कि जिन परावाक् सूक्ष्मताओं, अन्तरिमाओं और गहनिमाओं में मुझे उतरना पड़ा है, उनका समीचीन साक्ष्य प्रस्तुत करना मुझसे इतर किसी के लिये भी शायद शक्य न होता । उड़ान हो कि अवगाहन हो, कि विस्तार हो, कि अतिक्रमण हो, उनमें इतना परात्पर होता गया हूँ, कि ठोस मूर्त धरती, आसमान या किसी सूक्ष्मतम रूपाकार पर तक टिकाव मेरे वश का ही न रहा। ऐसे में मेरी इन अन्तर्गामी और ऊर्ध्वगामी यात्राओं के शून्यावगाही विक्रमों और अतिक्रमणों का साक्ष्य दूसरा कोई कैसे दे पाता । रचना में तो सब सीधा सपाट खुलता नहीं, खुलना चाहिये भी नहीं : तब मेरी उन ख़तरनाक उत्तानताओं, गहराइयों, चढ़ाइयों और उतराइयों की ख़बर कैसे मिल पाती, जो हर मनोविज्ञान या केवलज्ञान तक की हदों से बाहर चली जाती रही हैं । क्यों मेरी ये भूमिकाएँ इतनी अनिवार्य हुईं, इसकी क़ैफ़ियत को चुका देना आज अनिवार्य हो गया, इसी से उस बारे में अपना अन्तिम शब्द कह कर, मैं एक अद्भुत उऋणता, निष्कृति और कृतज्ञता महसूस कर रहा हूँ ।
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