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________________ ३२ रचना के क्षेत्र में इस सर्वज्ञता का माध्यम होती है कल्पना-शक्ति, मनुष्य की कल्पक चेतना। उसकी पहुँच अज्ञात अनन्त-निःसीम के प्रदेशों तक में होती है। मौलिक सत्ता में अव्यक्त रूप से नित्य विद्यमान रूपाकार और परिणमन तब कलाकार की चेतना में स्वतः प्रस्फुरित होते हैं। उसकी तीव्रतम अनन्तगामी संवेदना ही उन्हें पकड़ और खींच कर मूर्त आकारों में रूपायित कर देती है। इसी को विज़नरी 'फेकल्टी' यानी पारदर्शी प्रज्ञा कहते हैं। कोई भी बड़ा कलाकार विजनरी, पारदर्शी हुए बिना रह नहीं सकता। ____ ज़ाहिर है कि आलेखित इतिहास-पुरातत्व में आम्रपाली के साथ महावीर के जुड़ाव का कोई संकेत या सम्भावना तक उपलब्ध नहीं है। फिर भी रचना-प्रक्रिया की विज़नरी उड़ान या अवगाहन में जैसे 'अनुत्तर योगी' के रचनाकार के विज़न-वातायन पर वह संयोग मानो हठात् अनावृत्त (रिवील) या आविष्कृत हो गया। यों भी शोध के क्षेत्र में तार्किक संगतियों के क्रम द्वारा भी नये तथ्यों के निर्णय का उपक्रम प्रचलित है ही। महावीर यदि अपने समय के सर्वप्रकाशी सूर्य थे, तो आम्रपाली भी अपने समय की एक यत्परोनास्ति नारी-शक्ति थी। वह केवल रूप-लावण्य की इरावती अप्सरा ही नहीं थी, प्रतिभा और प्रज्ञा की भी वह सवतुर्वरेण्या सावित्री थी। ऐसा लगता है जैसे महावीर के भीतर के सविता-नारायण के महावीर्य, महाकाम तेजस्फोट को झेलने के लिये ही, उसका जन्म हुआ था। इसी से वह किसी एक की भार्या न होकर, नियति से ही सर्वकल्याणी श्रीसुन्दरी के सिंहासन पर आसीन हुई। बाहरी व्यवस्था के बलात्कार को अपनी अन्तःशक्ति से प्रतिरोध दे कर, उसके सारे बन्धनों को तोड़ कर, उसने केवल महावीर को ही मानो अपने एकमेव वरेण्य पुरुष के रूप में चुना। ___ बहुत संगत तर्क है यह, कि वैशाली के देवांशी सूर्यपुत्र महावीर, और वैशाली की एक अनन्य देवांशिनी बेटी आम्रपाली का जुड़ाव न हो, यह सम्भव ही कैसे हो सकता है। तो तर्क, संवेदन, कल्पन, विज़न-इन सारी मानवीय ज्ञान की स्फुरणाओं के एकाग्र और सर्वभेदी तथा पारदर्शी प्रवेग की नोक पर आम्रपाली के तलगत सत्य-स्वरूप का जैसे रचनाकार को आकस्मिक साक्षात्कार हो गया, और अत्यन्त स्वाभाविक रूप से महावीर के साथ उसका जुड़ाव सृजन में बरबस ही एक अचूक प्रत्यय के साथ आविर्भूत हो गया। पुरानी मसल चरितार्थ हुई कि 'जहाँ न पहुँचे रवि, वहाँ पहुँचे कवि' । कवि की आत्मिक संवेदन-ऊर्जा और अनिर्वार संवेग ने इतिहास के अँधियारे आवरण चीर दिये, और आम्रपाली तथा महावीर की सत्य-कथा ने प्रकट होकर, जैसे इतिहास और महाकाल की धारा को मानो एक नया ही मोड़ दिया। एक महान् अतिक्रान्ति घटित हो गई। मेरे मन यही किसी भी महान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003848
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size6 MB
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