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कारण है । भारत के सरनाम अंग्रेजी प्रकाशकों की रिपोर्ट है, कि विदेशों में तथाकथित आधुनिक भारतीय उपन्यास की माँग तेजी से कम होती जा रही है। नौबत यहाँ तक आ पहुंची है, कि पहला संस्करण भी पड़ा रह जाता है। वजह यह बतायी जाती है, कि जागृत और रौशन पश्चिमी पाठक की भारत के उस कथा-साहित्य में दिलचस्पी नहीं रह गई है, जिसमें पश्चिमी सभ्यता से आक्रान्त भारतीय चरित्रों का आलेखन होता है। पश्चिम के पिटेपिटाये अस्तित्ववादी और अतियथार्थवादी पात्रों की पुनरावृत्ति या भद्दी नक़ल, और संत्रास, अकेलेपन तथा दिशाभ्रम की पश्चिमी समस्याओं का हमारे नये उपन्यास में जो प्राबल्य बढ़ता जा रहा है, वह पश्चिमी पाठक को तृप्त नहीं करता। वह उसे अपनी ही जूठन या वमन लगता है। उसमें उसे भारत का वह आन्तरिक मनुष्य नहीं मिलता, जिसे जानने-समझने की उसे तीव्र उत्कण्ठा और प्यास है। सच तो यह है, कि पश्चिम भारतीय उपन्यास में भारत की आदिम आत्मा से संपृक्त हो कर, उसकी जड़ों में उतर कर, वह शांति और समाधान पाना चाहता है, जो भारतीय चेतना की चिरकालीन विरासत रही है। भारत की वह गहनगामी सांस्कृतिक परम्परा, जो उसके क्लासिक महाकाव्यों और उसकी कलाओ में उपलब्ध है, वह आज के भारतीय मनुष्य में कहाँ तक जीवन्त है, यही जानने के लिये पश्चिम आज उत्कण्ठित है। आधुनिक जापानी साहित्य और मनुष्य में चूंकि जापान की शाश्वती परम्परा आज भी अविच्छिन्न रूप से जीवित है, इसी कारण पूर्व के साहित्यों में जापानी साहित्य ही अपेक्षाकृत आज के पश्चिमी मनुष्य को अधिक तृप्त करता है।
मगर यह एक कटु सत्य है, कि आधुनिक भारतीय बौद्धिक और सर्जक चूंकि अपनी सनातन जीवन्त परम्परा से कट गया है, इसी कारण पश्चिमी जगत् में आज का भारतीय उपन्यास एक हद के बाद अपनी अपील खोता जा रहा है। टाइट जीन्स् और टाइट जसियों में कसी आज की थियेटर करने वाली वे लड़कियाँ और लड़के, जो सिगरेट और शराब की प्याली हाथ में उठाये अपनी कृत्रिम समस्याओं और त्रासदियों से उलझ रहे हैं, वह सारा कुछ पश्चिम से आयातित है : पश्चिमी मानस के लिये वह अत्यन्त मॉनोटोनस है, उसका अपना ही वमन है, उसकी अपनी ही क्रॉनिक डीसेंट्री है। उसे पढ़ना उसे ग्लानिजनक और निहायत अरोचक तथा कृत्रिम लगता है। यही कारण है कि तथाकथित आधुनिक भारतीय उपन्यास पश्चिम में 'फ्लैट' हो चुका है, उसका कोई असर नहीं पड़ता। . भारत का प्राचीन स्थापत्य, शिल्प, वास्तु, भारत का क्लासिकल संगीत और नृत्य, भारत की पारम्परिक स्वप्न-फन्तासी-जनित चित्रकला, उसके
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